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________________ ३६७ १४. ऋजु सूत्र नय ४. ऋजु सूत्र नय के ___ भेद प्रभेद व लक्षण भूत स्वभाव उसका सूक्ष्म भाव है। इन चारों विशेषों से समवेत् वह द्रव्य सूक्ष्म सत् है । घट् या मनुष्य स्थूल द्रव्य है, उनका आकार या संस्थान उनका स्थूल क्षेत्र है, उनकी उत्पत्ति से विनाश पर्यस्त की एक स्थिति उनका स्थूल काल है, और उसका लाल रग अथवा इन्द्रिय ज्ञान उनका स्थूल भाव है । इन चारो स्थूल विशेषों से समवेत वह वह-पदार्थ स्यूल सत् है । इसी प्रकार अन्यत्र भी लागू कर लेना । यद्यपि अन्य विशेषों को धारण करने वाले ये स्थूल विशेष सामान्य की ही कोटि मे आ जाते हैं, परन्तु किसी प्रकार उनमे स्थूल एकत्व दिखाई देने के कारण उनको विशेष मान लेने में कोई विरोध नही आता। काल मुखेन कथन करने पर सूक्ष्म विशेष का नाम अर्थ पर्याय है और स्थूल विशेष का नाम व्यञ्जन पर्याय है । विषय भेद से इस नय के भी दो भेद हो जाते है-सूक्ष्म ऋजुसूत्र व स्थूल ऋजुसूत्र । सूक्ष्म विशेष ही अन्य विशेषों से सर्वथा शून्य होने के कारण शुद्ध कहा जाता है, अतः सूक्ष्म ऋजुसूत्र का अपर नाम शुद्ध ऋजुसूत्र भी है। इसी प्रकार स्थूल विशेष अन्य सूक्ष्म विशेषों से समवेत रहने के कारण अशुद्ध कहे जाते है, अतः स्थूल ऋजुसूत्र का अपर नाम अशुद्ध ऋजुसूत्र है। अब इन भेदो के पृथक पृथक लक्षण देखिये । १. सूक्ष्म ऋजुसूत्र या शुद्ध ऋजुसूत्र नय उपरोक्त सूक्ष्म सत् की स्वतत्र सत्ता को विषय करने वाला सूक्ष्म या शुद्ध ऋजुसूत्र है । एक सुक्ष्म समय स्थायी, कोई एक निरवयव एक प्रदेशी, स्वलक्षणभूत स्वभाव स्वरूप, व्यक्ति की स्वतत्र सत्ता देखने वाली दृष्टि को सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय कहते है । यद्यपि द्रव्यादि चारों ही अपेक्षाओं से सूक्ष्म विशेषों का यहा ग्रहण होता है, परन्तु
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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