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________________ ४. ऋजु सूत्र नय के भेद प्रभेद व लक्षण १४. ऋजु सूत्र न ३६६ सामान्य का सामान्य भाव है और उस व्यक्तिगत जीव का कोई स्वलक्षण रूप एकभाव विशेष जीव द्रव्य का विशेष भाव है । यद्यपि पृथक पृथक कहे गये हैं पर वास्तव ये पृथक नहीं है, बल्कि इन चारो मई एक अखण्ड सत् है । तहा भी सामान्य चतुष्टय से समवेत सत् सामान्य कहलाता है और विशेष चतुष्टय समवेत सत् विशेप कहलाता है । ऋजुसूत्र नय इस विशेष सत्ता को विपय करता है । इसका सम्बन्ध किसी भी प्रकार से अन्य विशेष से नही मिलाता । यही इस का एकत्व है । एकत्व का यह अर्थ नही कि प्रदेश या काल व भाव से रहित केवल द्रव्य की या द्रव्य भाव से रहित केवल काल की या केवल क्षेत्र की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करता हो, वल्कि यह है कि उस सत् के इस चतुष्टय मे अन्य द्वैत उत्पन्न न किया जा सके । चतुष्टय से रहित एकत्व तो खर्विपाण वत् है । इसी चतुष्टय से समवेत सामान्य सत् द्रव्यार्थिक नय का और विशेष सत् पर्यायार्थिक नय का विषय है । यद्यपि पर्यायार्थिक ऋजुसूत्र का कथन काल मुखेन करने में आता है, पर तहा अन्य तीन विशेष भी स्वत. समझ जाने चाहिये । चूकि "हर प्रकार से अर्थात द्रव्य क्षेत्र काल व भाव चारो से ही जो भेद को प्राप्त होवे वह पर्याय है" ऐसा पर्याय का लक्षण है । यह विशेष भी दो प्रकार का होता है - सूक्ष्म व स्थूल । हृद्मस्थ ज्ञानगम्य न हो वह सूक्ष्म है और छद्मस्य ज्ञान गम्य हो वह स्थूल है । अथवा सर्वथा निर्विशेष हो अर्थात जिस मे किसी भी प्रकार अन्य विशेष न देखा जा सके वह सूक्ष्म है और जो यद्यपि स्थूल लौकिक दृष्टि से एक दिखाई देता हो पर सूक्ष्म दृष्टि से जिस में अन्य विशेष देखे जा सके वह स्थूल है । परमाणु सूक्ष्म द्रव्य है, उसका निरवयव एक प्रदेश उसका सूक्ष्म क्षेत्र है, उसकी एक समय स्थित अर्थ पर्याय उसका सूक्ष्म काल है और एक अविभागी प्रतिच्छेद प्रमाण उसका स्वलक्षण
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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