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________________ १४. ऋजु सूत्र नय ३४७ २. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण २ ध ।१३।१९६१६ "तस्स विसए सारिच्छलक्खणसामाण्णा भावादो।" अर्थ -सादृश्य लक्षण सामान्य ऋजुसूत्र नय का विषय नही है। ३. क. पा ।१।ह २७८॥३६४१४ "ण च सामाणमत्थि, विसेसेसु अणुगय अतुट्टसरूवसाण्णान्नुवलंभादो।" अर्थः--इस नय की दृष्टि में सामान्य है ही नहीं, क्योकि विशेषों मे अनुगत और जिसकी सन्तान नही टूटी है ऐसा नही पाया जाता। ३ लक्षण नं ३ (द्रव्य की व्यक्तिगत सत्ता में संयोगादि का अभाव.---- - १. क. पा. १। ह १९३।२३०।२ नैकत्वमनापन्नयोस्तौ (सयोग समवायो वास्ति), अव्यवस्थापत्तेः । ततः सजातीय विजातीय निर्मुक्ताः केवलाः परमाणव एव सन्तीति भ्रान्त स्तम्भादिस्कन्धप्रत्यय । नास्य नयस्य समानमस्ति, सर्वथा द्वयो समानत्वे एकत्वापत्तेः । न कंथचित्समानताऽपि, विरोधात् । ते च परमाणवो. निखयवाः, ऊर्ध्वाधोमध्यभागाद्यवयवेषु सत्सु अनवस्थापत्ते , परमाणोवाऽपरमाणुत्व प्रसगात् ।” अर्थ-सर्वथा भिन्न दो पदार्थो मे भी सयोग सम्बन्ध अथवा समवाय सम्बन्ध. नही बन सकता, क्योकि सर्वथा भिन्न दो पदार्थो मे संयोग अथवा समवाय सम्बन्ध के मानने पर अव्यवस्था प्राप्त होती है । इसलिये सजातीय और विजातीय दोनो प्रकार की उपाधियो से रहित केवल शुद्ध परमाणु ही है, अतः जो स्तम्भादिरूप स्कन्यो का
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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