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________________ १४ ऋजु सूत्र नय ३४६ इस प्रकार जन्म से मरण पर्यन्त स्थायी निरवयव स्वसंस्थान तथा स्वलक्षणभूत एक स्वभाव स्वरूप कोई सामान्य रहित विशेष जड़ या चेतन व्यक्ति ही स्वतंत्र रूपेण सत् है । यह उक्त लक्षणों का सार है । अव इन सर्व लक्षणों की पुष्टि व विशदता के अर्थ कुछ आगमोक्त वाक्य उद्धृत करता हूं । १ लक्षण नं० १ (व्युत्पत्ति): १ स. सि । १।३३।५११ " ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तन्त्रयतेति ऋजुसूत्र.।” २. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण अर्थ - सीधे और सरल विषय को सूत्रित करता है, स्वीकार करता है, ऐसा ऋजुसूत्र नय है । ( रा. व | १|३३|७|६६) २ आप 1981 प्. १२५ “ऋजु प्राजल सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः ।” अर्थ --जो सरलता पूर्वक पदार्थों को ग्रहण करे सो ऋजुसूत्र है । ३. ध ।१।पृ ८६|४ “ऋजु प्रगुण सूत्रयति सूच्यतीति तत्सिद्धेः ।" अथे - सीधे व सरल विपय को सूत्रित व सूचित करता है, ऐसा ऋजुसूत्र नय है । ( क. पा. ११ ६ १८५२३३।३) २. लक्षण नं २ ( सामान्य रहित विशेष ग्राहक ) . .-- १ श्लो. वा ।१।२।१६।१५ " सामान्य द्रव्य से रहित कोरा विशेष भी ऋजुसूत्र से कल्पित किया जाता है ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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