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________________ १३ सग्रह व व्यवहार नय ३३१ ६ .. सग्रह व व्यवहार नय समन्वय से मरण पर्यन्त रहने वाला मनुष्य एक स्वतंत्र द्रव्य समझा जाता है, परन्तु जीव द्रव्य की पर्याय नही । इसी मनुष्य मे आगे पीछे दीखने वाली बालक युवा व वृद्ध रूप अवस्थाय अवश्य लौकिक दृष्टि स' पर्याय रूप मे ग्रहण होती हैं। मनुष्य पर्याय से पहिले यह जीव किस पर्याय मे था और मृत्यु के पश्चात यह किस पर्याय मे चला गया यह प्रत्यक्ष न होने के कारण उसे पदार्थ समझा जाता है। बालक युवा आदि अवस्थाओं का पूर्वोत्तर कालवर्ती पना स्पष्ट होने के कारण इन्हे पर्याय गिना जाता है। इसीलिये कहा जा सकता है कि व्यवहार नय की विषयभूत मनुष्य आदि पर्यायो मे व्यवहारिक दृष्टि से सामान्य व विशेष काल का अभाव है। - ४ शंकाः--संग्रह नय के विषय में द्रव्यादि चतुष्टयगत भेद उत्पन्न करना व्यवहार नय का, और व्यवहार नय के भेदों को पुनः अद्वैत रूप से ग्रहण करना संग्रह नय का काम है । पुन. संग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये उस अद्वैत पदार्थ मे अवान्तर भेद करना व्यवहार का और व्यवहार गत भेदों को पुनः अद्वैत रूप से ग्रहण करना संग्रह नय का काम है। इस प्रकार की व्याख्या मे अनवस्था का प्रतिभास होता है ? उत्तर --ऐसा नहीं है, क्योकि जैसा कि पहिले बता दिया गया है कि इस भेद प्रभेद की सीमा वहा जाकर समाप्त हो - , जाती है जहां कि अन्तिम भेद प्राप्त हो जाये । अन्तिम भेद से तात्पर्य यहा द्रव्य क्षेत्र काल व भाव का वह अन्तिम खण्ड है जिसका कि पुनः छेद न किया जा सके । द्रव्य का अन्तिम भेद परमाणु है, क्षेत्र का अन्तिम . भेद आदि मध्य अन्त रहित एक प्रदेश है, काल का
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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