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________________ १३ सग्रह व व्यवहार नय_ ३१६ . ३. सग्रह नय विषेश विशेष व्यक्तियो की अपेक्षा किये बिना, शुध्द द्रव्य को सन्मात्र मानने वाला शुध्द संग्रह नय है । जैसे कोई भी विशेषता न होने के कारण यह सारा विश्व सत् है" ऐसा कहना। यह इस नय के उध्दरण हुए, अब इसका कारण व प्रयोजन देखिये । विश्व मे स्थित जब सम्पूर्ण पदार्थ अस्तित्व रूप ही है, और यह बात सर्व सम्मत है, तो विश्व मे अस्तित्व सामान्य के अतिरिक्त और रह ही क्या गया। इस सामान्य अस्तित्व का प्रत्यक्ष ही इस नय की उत्पत्ति का कारण है। यदि यह सामान्य अस्तित्व दृष्टि मे न आता तो. इस नय की भी कोई आवश्यकता न होती । वस्तु के अद्वैत स्वभाव को या सर्व के एक सामान्य स्वभाव को दर्शाना इसका प्रयोजन है। .. २ अशुद्ध संग्रह नयः शुद्ध सग्रहवत् अशुध्द सग्रह भी तत्व की द्रव्य क्षेत्र काल भाव गत अद्वैतता को ही ग्रहण करता है। अन्तर केवल इतना है कि उसका विषय महा सत्ता था और इसका विषय अवान्तर' सत्ता है । इस दृष्टि मे चेतन तत्व या अचेतन तत्व एक एक सत्ता वाले है, व नित्य है तथा स्वलक्षण भूत एक अद्वैत स्वभाव वाले है । इसी प्रकार संसारी व मुक्त, स व स्थावर, दो इन्द्रिय आदि पचेन्द्रिय पर्यन्त के जीव अथवा पृथ्वी आदि वनस्पति पर्यन्त की धातु इत्यादि सर्व ही यद्यपि व्यक्ति की अपेक्षा अनेक अनेक है परन्तु एक जाति सामान्य की अपेक्षा वे एक एक है। भले ही व्यक्ति की अपेक्षा वे उत्पत्ति व विनाश युक्त हों पर जाति की अपेक्षा वे त्रिकाली स्थायी है। भले ही व्यक्ति की अपेक्षा अनेक प्रकार के स्वभाव व वर्णादि आकार वाले हो पर जाति की अपेक्षा वे एक स्वभावी है । इस प्रकार द्रव्य काल व भाव तीनों ही अपेक्षाओ से ·उन सर्व मे तथा अन्य भी अवानन्तर
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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