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________________ १३ -: संग्रह व व्यवहार नय : १. महा सत्ता व अवान्तर सत्ता, २. संग्रह नय सामान्य, ३ संग्रह नय विशेष, ४. व्यव • हार नय सामान्य, ५. व्यवहार नय विशेष, ६. संग्रह व्यवहार नय समन्वय जैसा की पहिले बताया चुका है, नैगम नय द्रव्याथिक या ज्ञान नय होने के कारण अत्यन्त व्यापक है । सकल्प १. महा सत्ता व ग्रवान्तर सत्ता 4 मात्र ग्राही होने के कारण सद्भाव व असद्भाव दोनो इसके विषय है । तहा असद्भाव तो अभावात्मक होने के कारण केवल ज्ञान नय का विषय बन सकता है, पर अर्थ नय का नही । परन्तु सद्भाव तो सद्रव है, अतः वह ज्ञान व अर्थ नय दोनो का विषय बन सकता है । संग्रह व व्यवहार नय क्योंकि अर्थ नय है, अत. इनको जानने के लिये हमे सद्भाव रूप सत का विश्लेषण करके उसका विशेष परिज्ञान प्राप्त करना होगा । सत् सामान्य के
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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