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________________ १२. नैगम नय २८१ ५. पर्याय नैगम नय ज्ञान मात्रा के आकारों मे संकल्प के आधार पर ही यह द्वैत किया गया है, इसलिये भी इसको नैगम कहना युक्त है । इसलिये इसका 'अर्थ पर्याय नैगम नय' ऐसा नाम सार्थक है । यह इसका कारण है। कोई भी अर्थपर्याय क्षणिक ही होती है ऐसा बताना इसका प्रयोजन है । ३. व्यञ्जन पर्याय नैगमः-- अर्थ पर्याय वत् यहा भी पर्याय पर से पर्याय का संकल्प कराना अभीष्ट है। विशेप इतना है कि वहा तो विशेषण विशेष्य दोनो क्षणिक थे और यहा विशेषण विशेष्य दोनो ही स्थायी होने चाहिये । तहा गुण सामान्य तो त्रिकाल स्थायी होने के कारण इस नय के विषय वन ही जाते हैं, परन्तु स्थूल दृष्टि मे स्थायी दिखने वाली व्यञ्जन पर्याये भी इस की विपथ भूत है । यह वात अर्थ पर्याय नैगम का कथन करते समय बताई जा चुकी है । हा द्रव्य पर्यायो का ग्रहण इसमे सर्वथा हो नहीं सकता, क्योकि अनेक पर्यायो का पिण्ड होने के कारण वह द्रव्य नैगम का विषय है । 'जीव मे ज्ञान सत् है' अथवा 'ससारी जीव मे मति ज्ञान सत् है' ऐसा कहना इस नय के उदाहरण है । यहा सत् सामान्य का नित्य अग तो विशेषण है और ज्ञान व मति ज्ञान विशेष्य है । इस प्रकार सत् की नित्यता पर से किसी भी गुण अथवा व्यञ्जन पर्याय की नित्यता या ध्रुव अस्तित्व का सकल्प करना व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है । यह तो इसके लक्षण व उदाहरण हुए, अब इस की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित वाक्य उद्धृत करता हूँ। १ श्लो. वा. । पु ४ । पृ. ३२ "वस्तु का आकार देखकर वस्तु को जानने का सकल्प (व्यञ्जन पर्याय नैगम है)।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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