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________________ १२ नंगम नय २८० ५. पर्याय नैगम नय कर लेना । 'क्रोध क्षण ध्वसी है' ऐसा कहना अर्थ पर्याय नैगम का उदाहरण है। वैसे तो क्रोध व क्षणध्वसी पना कोई पृथक पृथक पाये नही है। क्रोध का स्वभाव ही क्षणध्वसी है परन्तु फिर भी इस वाक्य मे या ऐसी विचारणा मे क्योंकि क्रोध का स्वभाव जानना अभीष्ट है अत वह तो विशेष्य है और 'क्षणध्वसीपना' यह विशेषण है, क्योंकि इस के द्वारा उस का परिचय मिल रहा है। यद्यपि प्रत्येक पर्याय स्वय क्षण ध्वसी होती है, परन्तु भेद विवक्षा से विचार करने पर, उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक 'सत्' के उत्पाद व्यय स्वरूप अनित्य अग के कारण से ही पर्यायो मे वह क्षणिक पना आता है । इस प्रकार कारण कार्य का भेद डालकर 'उत्पन्न ध्वसी' इस भाव को तो 'सत्' गुण की अर्थ पर्याय कहते है और क्रोध' चारित्र गुण की अर्थ पर्याय है । इस प्रकार एक गुण की अर्थ पर्याय पर से अन्य गुण की अर्थ पर्याय का सकल्प करना अर्थ पर्याय नैगम नय का विषय है । अब इसकी पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित वाक्य उद्धत करता है। १ श्तो. वा. पु. ४ पृ २६ “प्रति क्षण ध्वसी सुख से देह धारी ससारियो का सकल्प (अर्थ पर्याय नैगम है )। २ रा. वा हि । १।३३ । १९८ "प्राणी के सुख सवेदन है सो क्षण ध्वसी है" या का यहू नैगम सकल्प करे है । अव इस नय के कारणव प्रयोजन देखिये । यहां लक्षण भी अर्थ पर्याय है और लक्ष्य भी अर्थ पर्याय है। इस प्रकार अर्थ पर्याय पर से अर्थ पर्याय का सकल्प करने या परिचय पाने के कारण यह अर्थ पर्याय नय है । द्वेत करके भी अद्वैत को ग्रहण करने के कारण नैगम है अथवा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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