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________________ ११ शास्त्रीय नय सामान्य २२४ जैसे संग्रह नय की अपेक्षा वृक्ष एक पदार्थ है, परन्तु व्यवहार नय की अपेक्षा वही वृक्ष पदार्थ आम, नीबू, आदि अनेकों प्रकार का होता है । सग्रह नय की अपेक्षा जीव एक है और व्यवहार नय की अपेक्षा वह दो प्रकार का है - ससारी व मुक्त ये दोनो नये द्रव्याथिंक नय के अन्तर्गत है । इनमे से संग्रह नय अभेद ग्राही होने के कारण शुद्ध द्रव्याथिक है और व्यवहार नय भेद ग्राहक होने के कारण अशुद्ध द्रव्यार्थिक है । ४. सप्त नय परिचय सामान्य ऋजु सूत्र नय भी अर्थ नय है, परन्तु सर्वथा विशेष ग्राही है । यह पदार्थ की किसी एक समय वर्ती सूक्ष्म पर्याय मे ही परिपूर्ण पदार्थ की कल्पना करत । है, इसलिये यह पर्यायार्थिक नय है । इस नय की दृष्टि में पदार्थ एक समय स्थायी है । उत्तर समय मे उसका सर्वथा निरन्वय नाश हो जाता है, और कोई नया ही पदार्थ उत्पन्न होता है । शब्द समभिरूढ़ व एवंभूत ये तीनों नये शब्द या वचन नय के भेद है | शब्द क्योंकि स्वय एक पर्याय है इसलिये भले ही शब्द द्रव्य को वाच्य बनाये परन्तु उसे विषय करने वाली ये नये पर्यायार्थिक है । ये पर्यायार्थिक नये उस शब्द के वाच्यभूत पदार्थ को विषय न करके केवल उस वाचक शब्द के सम्बन्ध में ही तर्क वितर्क करते है । ऋजु सूत्र पर्यन्त की अब तक अर्थ नयो मे शब्द गत सूक्ष्म दोषो का विचार न करके किन्ही भी शब्दों या कैसे भी वाक्यों के द्वारा अर्थ का प्ररूपण कर दिया जाता था, परन्तु ये शब्द नय उन शब्दों के अर्थ मे अथवा उनके प्रयोग मे सूक्ष्म से सूक्ष्म भी दोष न आने पाये ऐसा विवेक उत्पन्न कराते है | ऋजुसूत्र नय भिन्न लिंग व संख्या आदि के भी अनेक शब्दों को एकार्थ वाची मानकर अपने अर्थ का प्रतिपादन करने के लिये उन शब्दों मे कोई सा भी शब्द कहीं भी प्रयुक्त कर देता था ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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