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________________ ११. शास्त्रीय नय सामान्य २१२ १. ज्ञान अर्थ व शब्द नय तीन प्रकार की है-ज्ञाननय शब्द नय और अर्थ नय.। भावात्मक त ज्ञान रूप ज्ञान प्रमाण के एक देश को ग्रहण करने वाला 'ज्ञान नय' है। शब्दात्मक श्रुत ज्ञान रूप प्रमाण के अर्थात आगय के एक देश को ग्रहण करने वाला ज्ञान 'शब्दनय, है,अर्थात आगम मे प्रयुक्त अनेक प्रकार की युक्तियो वाला वाक्यो का ज्ञान 'शब्द नय' है। अथ अर्थात वस्तु के एक देश को, गुण को अथवा पर्याय को ग्रहण करने वाला ज्ञान 'अर्थ नय' है । यद्यपि नय के तीन भेद कर दिये गये ज्ञान-अर्थ, व शब्द । परन्तु इसका यह अर्थ नही शब्द या अर्थ (वस्तु) स्वय नय रूप है, नय तो स्वय ज्ञान रूप ही है । वह ज्ञान जिस प्रकार की वस्तु का आश्रय लेकर उत्पन्न होता है उस नाम से ही वह ज्ञान उपचार से पुकारा जाता है-जैसे कि घी के आश्रय भूत धड़े को भी घी का घड़ा उपचार से कहा जाता है । अतः ज्ञान को विषय करने वाला ज्ञान 'ज्ञान नय, कहा जाता है, अर्थ (वस्तु) को विषय करने वाला ज्ञान 'अर्थ नय, कहा है, और शब्द को विषय करने वाला ज्ञान 'शब्द नय, कहा जाता है। ये तीन ही नय अपने स्वरूप से ज्ञानात्मक ही है, शब्दात्मक व अर्थात्मक नही। यहा शंका हो सकती है कि अर्थ नय और शब्द नय कहना तो ठीक है, परन्तु ज्ञान नय कहना ठीक नही है । इसका भी कारण यह है कि ज्ञान 'अर्थ, को तथा 'शब्द, को तो विषय करता देखा जाता है, पर ज्ञान स्वयं ज्ञान को ही विषय करता हो, ऐसा देखा नहीं जाता । सो ऐसी शका करना युक्त नही है, क्योंकि दीपक की भांति 'ज्ञान, स्व पर प्रकाशक है । जिस प्रकार दीपक अन्य पदार्थो को तो प्रकाशित करता ही है, परन्तु स्वयं को भी वह स्वयं ही प्रकाशित कर लेता है, । उसे व्यक्त करने के लिये अन्य दीपक की आवश्यकता नही पड़ती । उसी प्रकार ज्ञान अन्य पदार्थों को तो जानता ही है, परन्तु
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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