SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. पक्षपात व एकान्त १. पक्षपात का विष भले ही वह मेरे हित की क्यों न हो, प्रवेश पाने तक को भी अवकाश नही रहा है। मेरी धारणा से विलक्षण या विपरीत कोई एक शब्द मात्र भी आज मुझ मे क्षोभ उत्पन्न कर देता है और मै अन्दर ही अन्दर जलता या कुढता हुआ व्याकुल हो उठता हूँ। इन पक्षपातों ने आज मेरे अन्दर से कोई भी नई बात सुनने व सीखने की जिज्ञासा तक को धो डाला है, और मैं चला जा रहा हूँ अहंकार के घोड़े पर सवार हुआ किस दिशा मे, यह स्वयं मै नही जानता, सभवतः ऐसे अंधकार की ओर जहां मुझे मेरी धारणा के अतिरिक्त कुछ दिखाई न दे। हे नाथ ! अद्वितीय तेज का उपासक बन कर भी मे प्रकाश की बजाये अन्धकार में ही खोया जा रहा हूँ। मेरी रक्षा करे। मेरे हृदय मे भी प्रकाश जागृत करें। मेरी सकुचित दृष्टि को हर कर इसको व्यापकता प्रदान करे । इसकी जटिलता को खोकर इसमे सरलता का बीजारोपण करे । मै बड़ा वृक्ष बना रहने की बजाय अब एक छोटा-सा पौधा बन जाना चाहता हूँ, जो कि बड़ी से बड़ी आधी से भी टूटने न पाये, बल्कि तनिक सी हवा आने पर भी झुक जाये। छोटे व्यक्ति को छोटा ही बने रहना योग्य है । अभिमान व अहंकार के बल पर में झूठ मूठ अपने को बड़ा समझने लगा और झुकना भूल गया। नाथ! मुझको अब झुकना सिखा दीजिए। किसी की भी बात सुनकर मेरे अन्दर क्षोभ उत्पन्न होने की वजाय उसके समझने के प्रति झुकाव होना चाहिये। ' अरे रे ! देखो इस पक्षपात का विषैला फल, जिसने सुनने तक की सहिष्णुता भी आज मुझ मे नही छोड़ी है, अपने हित को जानने की पात्रता कहा से आये, जब किसी की बात सुनूगा ही नहीं तो जानूगा कैसे, और बिना जाने मेरे जीवन का कल्याण व उत्थान होगा कैसे ? कदाचित किसी की बात को सुनकर या पढ़कर या स्वय अपनी विचारणा के वल पर जानकर, मेरे अन्दर जो यह धारणा उत्पन्न हो गई है,कि मैं सव कुछ सीख गया हूँ; इसके अतिरिक्त सीखने को अब कुछ शेषनही रहा है, वह कितनी विषैली है, इसको आज तक मै जान न सका । खेद
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy