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________________ ६. नय की स्थापना १७५.. ४. वचन कैसा होना - चाहिये गये या लिखे गये वाक्यों में जाकर । इन तीनों मे परस्पर कार्य कारण भाव है । वस्तु ज्ञान की सत्यता का कारण है और ज्ञान वचन की. सत्यता का कारण है। इसलिये नय के भी तीन ही भेद समझ लेने चाहिये: १. वस्तु नय, अर्थात् वस्तु मे दीखने वाले अंग । इसे आगम मे अर्थ नय कहा जाता है। . .. २. ज्ञान नय, अर्थात् प्रमाण ज्ञान में प्रति भासने वाला .. वस्तु का अंग । वस्तु के अनुरूप ज्ञान को ज्ञान नय कहते . है । अथवा वस्तु के आकार से प्रतिबिम्बित ज्ञान को ... ज्ञान नय कहते है। .... ३. वचन नय, अर्थात ज्ञान के उपरोक्त प्रतिभास के प्रकाश___नार्थ बोले गये या लिखे गये शब्द । इसे आगम मे शब्द नय या व्यञ्ज नय भी कहते है । वचन नय से इस बात का विवेक कराया जाता है, कि बोले या लिखे गये शब्द ऐसे होने चाहिये जिससे कि श्रोता या पाठक ठीक ठीक ही बाच्यार्थ को ग्रहण करे, भ्रम मे न पड़े। क्योकि भिन्न भिन्न स्थलो पर भिन्न अभिप्राय से बोले गये शब्दो के अर्थ मे भी तदनुसार भेद अवश्य पड़ जाता है। जिसका खुलासा आगे नय के भेदों मे 'शब्द नय' तथा उसके भेद प्रभेदों की व्याख्या करते हुए किया जायेगा। अर्थ नय, ज्ञान नय, और वचन नय, इन तीनों के सम्यक् मिथ्या ४. वचन कैसा पने पर दृष्टि डालने से पता चलता है, कि वस्तु के होना चाहिये प्रमाण ज्ञाता के लिये, अर्थ नय व ज्ञान नय तो सदा प्रमाण व नय साक्षेप ही रहते हैं, क्योंकि वस्तु को देखते हुए या उस
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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