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________________ ८ सप्त भगी १६४ ६. शका समाधान अत. यह सिद्धात जिज्ञासु जनो के लिये बड़ा उपकारी है । अनन्तों धर्मो पर पृथक पृथक सप्त भंगी लागू की जा सकती है, इसलिये वस्तु मे अनन्त सप्त भगियों की सिद्धि होती है। वस्तु मे दीखने वाले अनेको परस्पर विरोधी धर्म तो इस सिद्धात की उत्पत्ति का कारण है । क्योकि यदि धर्मो मे परस्पर विरोध न हुआ होता तो इस सिद्धांत का जन्म भी न हुआ होता। वस्तु के उलझे हुए रूप का सरलता से परिचय देना, उसके सम्बन्ध के सशय आदि का निरास करके ज्ञान मे दुढता लाना इस सिद्धात का प्रयोजन है। ६. शका समाधान यहा इस विषय सम्बन्धी कुछ शकाओ का समाधान कर देना योग्य है। १. शका.-"पर चतुष्टय की अपेक्षा वस्तु है ही नही अर्थात नास्तित्व स्वभाव वाली है" इस प्रकार वस्तु का निषेध किया जाना कैसे सम्भव है, क्या जगत में से उसका अभाव हो गया है ? उत्तर:- निपेध का अर्थ यहा सर्वथा निपेध नहीं है, बल्कि विवक्षित विषय मे से उसके अतिरिक्त अन्य विषयो का निषेध है। इसी भाव को सिद्धातिक भाषा मे उपरोक्त प्रकार कहा जाता है। वस्तु मे पर चतुष्टय नही है, या पर चतुष्टय मे यह वस्तु नहीं है दोनो बाते एकार्थक है । इसी को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि पर चतुष्टय की अपेक्षा बस्तु असत् है या नास्ति रूप है । यदि ऐसा न करे तो लोक के सर्व पदार्थ मिलकर एक हो जाये, अति ज्ञान मे उन का पृथक पृथक ग्रहण न हो सके । २. शंका:- नास्तित्व स्वभाव स्वीकार कर लेने पर उसी वस्तु में रहने वाले अस्तित्व स्वभाव के साथ विरोध आ जायेगा?
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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