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________________ ८ सप्त 'भगी....... १६२' ६. सप्त भंगी के कारण प्रयोजनादि बस इसी पर से सातों मंगों के लक्षण निकल आये:, १. किसी धर्म को दर्शाने के लिये, “इस अपेक्षा से ऐसा ही है" - इस प्रकार कहना अस्ति भग है। २ उसी धर्म को और दृढ़ करने के लिये उसके विरोधी धर्म का निपेध करते हुए, “ऐसा नही ही है" इस प्रकार कहना - नास्ति भंग है। . ३. दोनो के आगे पीछे, 'ऐसा ही है ऐसा नहीं है' इस प्रकार कहना अस्ति नास्ति भंग है। ४ युगपत दोनों को एक रस रूप से कहने की असमर्थता अव क्तव्य भंग है। ५. अवक्तव्य कहने से कोई सर्वथा अवक्तव्य न मान बैठे इसलिये 'अवक्तव्य होते हुए भी अपने अपने धर्म का उस अपेक्षा से अस्तित्व अवश्य है' इस प्रकार कहना अस्ति अवक्तव्य अंग है। ६. इसी प्रकार "अवक्तव्य होते हुए भी अपने अपने से विरोधी धर्मों का उस अपेक्षा से नास्तित्व अवश्य है' इस प्रकार कहना नास्ति अवक्तव्य भंग है । ७. 'यद्यपि युगपत कहा जाना असम्भव है पर क्रम से विधि निषेध द्वारा कहा अवश्य जा सकता है, सर्वथा अवक्तव्य नही है' इस प्रकार कहना सातवा अस्ति नास्ति अवक्तव्य भंग है। किसी भी उलझी हुई बात को कहने का यह एक वैज्ञानिक ढग ८. सप्त भंगी है जो नित्य ही हमारे प्रयोग मे आता है, परन्तु सिद्धांत के कारण का विकल्प न होने के कारण क्योंकि हम बुद्धि पूर्वक प्रयोजनादि इन भागों का प्रयोग नही करते है, इसलिये यह
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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