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________________ ७. प्रात्मा व उसके अग ८. पारिणामिक भाव जैसे कि पहिले बता दिया गया कि अनुभव सदा पर्याय का हुआ करता है गुणका नही, अर्थात व्यक्ति का होता है शक्ति तो वह है जो इन सब व्यक्तिों के पीछे छिपी बैठी है । दृष्टात पर से समझिये "स्वर्णत्व" यह शब्द सुनकर आप इसे शुद्ध कहेगे या अशुद्ध ? खान मे से निकले स्वर्ण पाषाण मे पडे स्वर्णत्व मे और फासे मे पड़े स्वर्णत्व मे क्या अन्तर है । खोटे सोने में पड़ा और खरे सोने मे पड़ा स्वर्णत्व क्या भिन्न भिन्न है ? स्वर्णत्व तो जहा भी है स्वर्णत्व है । स्वर्णत्व क्या कभी खोटा हो सकता है ? स्वर्णत्व तो केवल उस भाव विशेष का नाम है जो केवल पीलेपने, चमकदार पने व भारीपने रूप से प्रतीति में आता है । यह तो भाव वाचक संज्ञा (Abstract Noun) है । इसलिये भले स्वर्ण,मे खोट मिलाया जा सकना व निकाला जा सकना सम्भव हो, पर स्वर्णपने मे तो खोट मिलाना निकलना सम्भव नहीं । यदि मै पू छ कि स्वर्ण पने का क्या आकार, तो क्या बतायेगे आप? क्या इसे फासे की शकल का बतायेगे या कण्ठे की शकल का । फासे या कण्ठे की शकले सोने की तो कही जा सकती है, पर सोने पने की नही । एक तोले के जेवर मे और पांच तोले के जेवर मे सोना तो कम या ज्यादा कहा जा सकता है, पर क्या एक तोले वाले मे सोना पना कम कह सकेगे कभी ? स्वर्ण की एक कणिका मे सोने पने का जो एक सामान्य भाव विद्यमान है वही पांच तोले के जेवर मे है । सोना शुद्ध और अशुद्ध हो सकता है, पर सोने पने का भाव नही। बस इस सोने पने के भाव को, जो अनुमान मे आ सकता है पर व्यक्त नही देखा जा सकता, आप स्वर्ण का परिणामिक भाव या उसकी शक्ति समझे । यह है स्वर्ण का त्रिकाली श द्धपना । पका कर शुद्ध किये गये सोने की शुद्धता मे और इस त्रिकाली शुद्धता मे महान अन्तर है, क्योंकि वह कृत्रिम है और यह स्वाभाविक वह कार्य है और यह कारण । यदि सोने मे यह सोने पने का स्वभाव न होता तो भट्टी पर चढ़ाने से निकल कैसे पाता ? वही तो निकला है जो स्वभाव रूप से पहिले से उसमे विद्यमान था। भाव वाचक संज्ञा पर से अनुमान लगाया जा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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