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________________ ७ आत्मा व उसके अग १२० ३ चारित्र मे तो इतनी व्यापक दिखाई देती नही छोटी सी दीखती है। बस इस अन्दर मे छिपी शक्ति का नाम शक्ति है और प्रगट दीखने वाला वर्तमान का छोटासा रूप उस अग्नि सामान्य की व्यक्ति है। इसी प्रकार ज्ञान को समझना । वह जानने की अनन्त शक्ति रखता है जो भी सामने आ जाये उस ही जान जाये। क्या जानता हुआ यह थकेगा कभी ? नही । सर्व विश्व भी सामने आये तो जान जाये और फिर भी न थके । यदि ऐसे ऐसे अनन्तो विश्व भी हो तो भी जान ले और फिर भी न थके । बस इसी का नाम ज्ञान की शक्ति है । उस का मति श्रुति आदि रूप तो वर्तमान की छोटी छोटी सी व्यक्ति मात्र है । इस शक्ति को गुण सामान्य समझो और व्यक्ति को उसकी परिवर्तन शील पर्याय । मति, श्रुति, अवधि, व मन. पर्यय इस की छोटी व्यक्ति है, और केवल ज्ञान इस की पूर्ण व प्रचण्ड व्यक्ति या रूप है। सर्व शक्ति वहा व्यक्त या प्रगट हो जाती है अर्थात इस समस्त विश्व को तो यह जान ही लेता है, परन्तु यदि और भी हो तो भी जान जाये । जब और है ही नहीं तो जाने क्या ? इसे ही सर्वज्ञता कहते है । सो इस प्रकार जानना नाम तो ज्ञान शक्ति है । अब चारित्र शक्ति को सुनिये । यद्यपि यह भी ज्ञान व विचारण ३. चारित्र रूप ही है पर क्योकि इसका अनुभव दूसरे प्रकार से होता है ____ इसलिये इसका दूसरा नाम रख दिया है । या यो कहिये कि जानने का ही जब ऐसा सा ढग होता है तो उस ज्ञान को ही चारित्र नाम दे दिया जाता है । यह जो नित्य ही राग व द्वेषादि व त्रोधादि भाव विचारणाओं मे उठते' व दबते दिखाई देते है, बस इसी को हम चारित्र नाम की शक्ति कहते है । कोई भी शक्ति अपनी व्यक्ति के आधार पर ही जनाई जा सकती है या यो कहिये कि कोई भी गण सामान्य अपनी पर्याय के आधार पर ही जनाया जा सकता है । जैसे कि रगपना दर्शाने के लिये हरा पना व पीला पाना ही दिखाना पड़ता है। पहिले' भी बताया जा चुका है कि अनुभव गुण का नहीं हुआ करता, वल्कि पर्याय का होता है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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