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________________ स्याद्वाद महाविद्यालयका स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ४७३ मोह नहीं छोड़ देते हैं। आज कोई दान देता है तो उसका परिणाम अपने ही यहाँ देखना चाहता है। पर यह निश्चित है कि उसकी उतनी छोटी रकमसे कोई बड़ा काम नहीं चल सकता और न सर्वत्र उत्तम कोटिके कार्यकर्ता ही हो सकते हैं । देनेवाले महानुभाव जब तक अपने हृदयको विशाल कर उदार नहीं बनाते हैं तब तक उक्त कार्य स्वप्नवत् ही जान पड़ते हैं। अस्तु, तीसरे दिन प्रातःकाल साहुजीको 'श्रावक शिरोमणि' की पदवी दी जानेका प्रस्ताव रक्खा गया। उसके उत्तरमे आपने जो भाषण दिया उससे जनताने समझा कि आप कितने उज्ज्वल तथा नम्र-निरहंकार व्यक्ति हैं। उत्सव समाप्त होनेपर मैं प्रातःकाल श्री पार्श्व प्रभुकी वन्दना करनेके लिए गया था। उसी समय किन्हीं लोगोंने परिषदके द्वारा प्रकाशित हरिजन मन्दिर प्रवेश सम्बन्धी पुस्तिकायें जनतामे वितरण कर दी। फिर क्या था ? कुछ लोगोंने इसकी खबर उस समय मधुवनमे विद्यमान श्री मुनि महावीरकीर्तिजीको दे दी। खबर पाते ही आपका पारा गरम हो गया और इतना गरम होगया कि आपने जनतामे एकदम उत्तेजना फैला दी। जब मैं गिरिराजसे लौटकर २ बजे आया तब यहाँका रा दूसरा ही देखा। तेरापंथी कोठीके सामने महाराज जनताके समक्ष उत्तेजनापूर्ण शब्दोंमें अपना अभिप्राय प्रकट कर रहे थे। यह दृश्य देखकर मुझे लगा कि मनुष्य किसी वस्तुस्थितिको शान्त भावसे न सोचते हैं और न सोचनेका प्रयत्न ही करते हैं। मैं चुपकेसे जहाँ महाराज भाषण कर रहे थे पहुँचा और मैंने लोगोंसे कहा कि भाइयो । मैं तो रात्रिके ४ वजेसे श्री पार्श्व प्रभुकी वन्दनाके लिए गया था। यह पुस्तकें जो वितरण की गई हैं इसकी जानकारी मुझे न पहले थी और न अब भी है कि पुस्तकें कहाँसे आई और किसने वितरण की ? हरिजनोंके विषयमे
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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