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________________ ४७२ मेरी जीवन गाथा उत्सव मनाया गया जिसमे भगवान् ऋषभदेवसे सम्बन्ध रखनेवाले भापण हुए। विद्वानोंसे श्री पं० वंशीधरजी न्यायालंकार इन्दौर, पं० फूलचन्द्रजी वनारस, ६० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर, पं० मुन्नालालजी समगौरया सागर आदि अनेक विद्वान आये थे। काशीके सव विद्वान् थे ही। रात्रि में वणीं जयन्तीका आयोजन या जिसमे अनेक लोगोंने अपनी अपनी इच्छानुसार श्रद्धाञ्जलियाँ दीं जिन्हें मैंने नत मस्तक होकर संकोचके साथ श्रवण किया। दूसरे दिन स्याद्वाद विद्यालयका स्वर्ण जयन्ती महोत्सव हुआ। विद्यालयका परिचय देते हुए उसके अवतकके कार्यकलापोंका निर्देश श्री पं० कैलाशचन्द्रजीने किया। साहुजीने अपना भापण दिया तथा भाषणमें ही विद्यालयको चिरस्थायी करनेकी अपील समाजसे कर दी। समाजने हृदय खोलकर विद्यालयको सहायता दी। लगभग डेढ़ दो लाखकी प्राय विद्यालयको हो गई। ____एक दिन श्री रमारानीकी अध्यक्षतामें महिलासभाका भी अधिवेशन हुआ था जिसमें श्री चन्दाबाईजीकी प्रेरणासे महिलासभा को भी अच्छी आमदनी हो गई। जैनसमाजमे दान देनेकी प्रवृत्ति नैसर्गिक है। वह देती है और प्रसन्नतासे देती है परन्तु समाजम एक संघटनका अभाव होनेसे उस दानसे जो लाभ मिलना चाहिये नहीं मिल पाता। समाजमें जहाँ तहाँ मिलकर प्रतिवर्ष लाखों स्पयोंका दान होता है पर वह दान की हुई रकम स्व स्थानाम रहनसे छिन्न भिन्न हो जाती है और उससे समाजको ऊँचा उठानवाला कोई काम नहीं हो पाता। समाजके सर्व दानको एकत्र मिलाया जाय तो उससे विद्यालय तथा कालेज तो दूर रहो यूनियरसिटीका भी संचालन हो सकता है और उसके द्वारा जैन मंति का प्रचार सर्वत्र किया जा सकता है। दानका स्पया एकत्र तब तक नहीं हो सकता जब तक कि दाता महानुभाव अपने स्थानमा
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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