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________________ ४१६ गिरिराजके लिए प्रस्थान का पत्र आया कि आप जिस दिन ईसरी आ जावेंगे मैं उसी दिन ' नवमी प्रतिमाके व्रत धारण कर लूंगा। भगतजीके पत्रसे मुझे और भी प्रेरणा मिली जिससे मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि गिरिराज अवश्य जाना । यद्यपि शरीर शक्तिहीन है तथापि श्रीपार्श्व प्रभुमें इतना अनुराग है कि वे पूर्ण वल प्रदान करनेमे निमित्त होंगे। पौषशुक्ला ११ संवत् २००६ को भोजनके उपरान्त मैंने लोगोंके समक्ष अपना विचार प्रकट कर दिया कि मै आज गिरिराजके लिये १ बजे प्रस्थान करेगा। यह खबर सारे शहरमे विजलीकी भांति फैल गई जिससे वहुतसे लोग एकत्र हो गये और रोकनेका प्रयत्न करने लगे परन्तु मैं अपने विचारसे विचलित नहीं हुआ। लोगोके अवागमनके कारण १ वजे तो प्रस्थान नहीं कर पाया परन्तु ३ वजे प्रस्थान कर चल दिया। मार्गमे बहुत भीड़ हो गई। मैं जाकर गोपालगंजके मन्दिरमे बाहर जो कमरे हैं उनमें ठहर गया। रात्रिके १० बजे तक लोगोंका आना जाना बना रहा। सेठ भगवानदासजी वालचन्द्रजी मलैया आदि अनेक पुरुष आय पर मैं किसीके चक्रमें नहीं आया। दूसरे दिन प्रातःकाल गोपालगंजके मन्दिरमें शास्त्र प्रवचन हुआ। भोजनोपरान्त सामायिक किया। तदनन्तर १ बजेसे चल दिया। यूनीवरसिटीके मार्गसे चलकर शामके ५ बजे गमीरिया पहुंच गये । यहाँ तक सागरके अनेक महानुभाव पहुंचाने आये। गाँवके जींदारने सत्कार पूर्वक रात्रि भर रक्खा । जो अन्य लोग गये थे उन्हे दुग्ध पान कराया। खेद इस बातका है कि हम लोग किसी दूसरेको अपनाते नहीं। धर्मको हम लोगोंने अपनी सम्पत्ति मान रक्खा है।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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