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________________ विचार क ४११ त्रयोदशी और चतुर्दशी के दिन नगर के मन्दिरोंके दर्शनार्थ जुलूस निकले । क्षमावणीके दिन विद्यालयके प्रागणमे श्रीजिनेन्द्रदेवका कलशाभिषेक हुआ । क्षमाधर्मपर विद्वानोंके भाषण हुए । असौज बदी ४ को जयन्ती उत्सव हुआ । बाहर से भी अनेक महानुभाव पधारे | दिल्लीसे राजकृष्ण तथा फिरोजाबाद से श्रीलाला छदामीलालजी भी आये | आपने फिरोजाबादके मेलाकी फिल्म दिखलाई तथा राजकृष्णजी ने उसका परिचय दिया । जिसे देख-सुन कर जनता बहुत प्रसन्न हुई । विचार कण दीपावली के पूर्व धन्वन्तरि त्रयोदशी (धनतेरस) का दिन था । मनमे विचार आया कि आजके दिन सब लोग नया वर्त्तन खरीदते अतः हम भी आजसे प्रतिदिन एक एक नया वर्तन खरीदें | वर्तन नाम विचारका है । उस दिन से हमने कुछ दिन तक प्रतिदिन जो वर्तन खरीदे उनका संचय इस प्रकार है 'संसार मे वही मनुष्य वन्दनीय होते हैं जिन्होंने ऐहिक और पारलौकिक कार्योंसे तटस्थ रह कर आत्मकल्याणके अर्थ स्वकीय परिणतिको निर्मल बना लिया है ।" 'जो अवस्था आवे उसे अपनानेका प्रयत्न मत करो । पुण्य पाप दोनो ही त्रिकार परिणाम हैं, इनकी उपेक्षा करो ।' 'प्रभु कोई अन्य नहीं, आत्मा ही प्रभु है और वही अपनी रक्षा करनेवाला है । अन्यको रक्षक मानना ही महती अज्ञानता है । 'किसीको तुच्छ मत वनां, अपनी प्रशंसाकी लिप्सा ही दूसरेको तुच्छ बतलाती है । '
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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