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________________ ४०६ पर्व प्रवचनावली ब्रह्मचर्यसे रहनेका जीवन पर्यन्तके लिए नियम है । मैं उत्तर सुनकर शान्त हो गया । तदनन्तर जब कृष्णपक्षके बाद शुक्लपक्ष आया और इसने अपना अनुराग प्रकट किया तब मैने कहा कि मैंने शुक्लपक्षमे ब्रह्मचर्यसे रहनेका नियम जीवन पर्यन्तके लिये विवाह के पूर्व लिया है । स्त्री शान्त हो गई। इस प्रकार स्त्री-पुरुष दोनों साथ-साथ रहते हुए भी ब्रह्मचर्यसे अपना जीवन बिता रहे हैं। देखो उनके संतोषकी बात कि सामग्री पासमें रहते हुए भी उनके मनमें विकार उत्पन्न नहीं हुआ तथा जीवन भर उन्होंने अपना अपना व्रत निभाया। अस्तु, दशम अध्यायमें आपने मोक्षतत्त्वका वर्णन सुना है। इसमें आचार्य ने मोक्षका स्वरूप बतलाते हुए लिखा है कि 'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः' अर्थात् बन्धके कारणोंका अभाव और पूर्वबद्ध कर्मोंकी निर्जरा होनेसे जो समस्त कर्मोंका आत्यन्तिक क्षय हो जाता है वह मोक्ष कहलाता है। निश्चयसे तो सब द्रव्य स्वतन्त्र स्वतन्त्र है। जीव स्वतन्त्र है और कर्मरूप पुद्गल द्रव्य भी स्वतन्त्र हैं। इनका बन्ध नहीं, जब बन्ध नहीं तब मोक्ष किसका ? इस तरह निश्चयकी दृष्टि से तो बन्ध और मोक्षका व्यवहार बनता नहीं है परन्तु व्यवहारकी दृष्टिसे जीव और कर्मरूप पुद्गल द्रव्यका एकक्षेत्रावगाह हो रहा है, इसलिये दोनोंका वन्ध कहा जाता है और जब दोनॉका एक क्षेत्रावगाह मिट जाता है तब मोक्ष कहलाने लगता है । समन्तभद्र स्वामीने कहा है बन्धश्च मोक्षश्च तयोश्च हेत् बद्धश्च मुक्तश्च फलं च मुक्तेः । स्याद्वादिनो नाथ ! तवैव युक्तं नैकान्तदृष्ट स्त्वमतोऽसि शास्ता ॥
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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