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________________ ३६८ मेरी जीवन गाथा श्रात्मपरिणतिका विचार किया जाय । विचारका मूल कारण सम्यग्नान है, सम्यग्नानकी प्राप्ति आमश्रतिसे होती है, आप्तसुति श्रामाधीन है, आम रागदि दोप रहित है अतः रागादि दोपोंको जानो. उनकी पारमार्थिक दशासे परिचय करो। रागादि दोषोंका त्याग ही संसार बन्धनसे मुक्तिका उपाय है। रागादिकोका यथार्थ स्वरूप जान लेना ही उनसे विरक्त होनेका मूल उपाय है। ::: त्याग करते करते अन्तमे आपके पास क्या बचेगा ? कुत्र नहीं। जिसके पास कुछ नहीं बचा वह अकिञ्चन कहलाता है और अकिञ्चनका जो भाव है वही आकिञ्चन्य कहलाता है। परिग्रहका त्याग हो जानेपर ही पूर्ण आकिञ्चन्य धर्म प्रकट होता है। सुख आत्माका गुण है। भले ही वह वर्तमानमे विपरीतरूप परिणमन कर रहा हो पर यह निश्चित है कि जब भी वह प्रकट होगा तब आत्मामे ही प्रकट होगा यह ध्रुव सत्य है परन्तु मोहके कारण यह जीव परिग्रहको सुखका कारण जान उसके संचयमे रात दिन एक कर रहा है। 'परितो गृहाति आत्मानमिति परिग्रहः जो आत्माको सव ओरसे पकड़ कर जकड़ कर रक्ख वह परिग्रह है। परमार्थसे विचार किया जाय तो यह परिग्रह ही इस नीचको समन्तात्स ब ओरसे जकड़े हुए है। 'मूच्चो परिग्रहः ।' आचार्य उमास्वामी महाराजने परिग्रहका लक्षण मूछो रक्खा है। मैं इसका स्वामी हूँ, ये मेरे स्व हैं इस प्रकारका भाव ही मूछों है। इस मूर्खाके रहते हुए पासमे कुछ भी न हो तब भी यह जीव
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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