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________________ मेरी जीवन गाथा पर भी दृष्टि डालना चाहिये । एक स्थान पर कहा है दरिद्रान् भर कौन्तेय मा प्रयच्छेश्वरे धनम् । व्याधितस्यौषधं पथ्यं नीरुजस्य किमौषधैः ।। अर्थात हे युधिष्टिर । दरिद्रोंका भरण पोषण करो, सम्पन्न व्यक्तियोंको धन नहीं दो । रुग्ण मनुष्यके लिए औपधि हितकारी है, नीरोग मनुष्यको उससे क्या प्रयोजन ? प्रसन्नताकी बात है कि जैन समाजमे दान देनेका प्रचार अन्य समाजोंकी अपेक्षा अधिक है। प्रतिवर्ष लाखों रुपयोंका दान समाजमें होता है और उससे समाजके उत्कर्षके अनेक कार्य हो रहे हैं। पिछले पचास वर्षांसे आपकी समाजमें जो प्रगति हुई है वह आपके दानका ही फल है। ___ अष्टम अध्यायमे आपने बन्धतत्त्वका वर्णन सुना है । बन्धका प्रमुख कारण मोहजन्य विकार है । मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकपाययोगा बन्धहेतवः' इस सूत्रमे जो बन्धके कारण बतलाये हैं उनमे योगको छोड़कर शेप सब मोहजन्य विकार ही तो हैं। अन्य कर्मोके उदयसे जो भाव आत्मामे उत्पन्न होते हैं उनसे नवीन कर्म वन्ध नहीं होता । परन्तु मोह कर्मके उदयसे जो भाव होता है वह नवीन कर्मवन्धका कारण हे । कुन्दकुन्द स्वामीने भी समयसारमे कहा है रत्तो बंधदि कम्म मुचदि जीवो विरागसपत्तो। एसो जिणोवदेसो तम्हा कम्मेसु मा रज ॥ अर्थात रागी प्राणी कर्मोको वाँधता है और राग रहित प्राणी कर्मोको छोड़ता है । वन्धके विषयमें जिनेन्द्र भगवान्का यही उपदेश है, अतः कर्मोंमे राग नहीं करो। इस रागसे वचनेका प्रयत्न करो। यह राग आग दहे सदा तातें समामृत 'सेइये' यह राग रूपी आग
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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