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________________ मथुरामें जैन संघका अधिवेशन कि जहाँ पर जाते वहाँ आम जनतामें धर्मका उपदेश करते । जो मनुप्य उसमे रुचि करते वहाँ १ या २ दिन रहकर उन्हे भोजनादि प्रक्रियाकी शिक्षा देते तथा उनके गृह पर भोजन करते तब जैनधर्मका प्रचार होता या जहाँ ठहरे वहाँ पर साथमे रहनेवालोंने भोजन दिया खाया। रात्रिको जहाँ ठहरे वहाँ पर कुछ काल तो मार्गकी कथामे गया, कुछ गल्पवादमें गया, अन्तमे सो गये। एक त्यागीके भोजनमे बीसों रुपये व्यय हो गये, फल क्या निकला ? केवल मागेकी धूलि छानना ही तो हुआ। यह हम जानते हैं कि एक त्यागी २०) नहीं खा सकता परन्तु उसीके अर्थ तो यह आडम्बर है। कल्पना करो यदि वह एकाकी चलता तो जिस ग्राममे जाता मुझे विश्वास है कि उस ग्राममे एक आध दिन ही व्यवस्था होनेमें कठिनाई होती पश्चात सब ठीक हो जाता और लोग उसके जानेकी व्यवस्था कर देते। मै हृदयसे कहता हूँ मथुरा तक तो मैं पहुंचा देता। वीजी। आपसे मेरा अति प्रेम हो गया है इसका कारण आपकी सरलता है परन्तु खेद है कि लोगोंने इसका दुरुपयोग किया तथा आपसे जो हो सकता था वह न हुआ। इसमे मूल कारण आप भीर प्रकृतिके हैं। आपकी भीरु प्रकृति इतनी है कि मैं इनके यहाँ भोजन करने लगूंगा तो लोग मुझे क्या कहेगे ? यह आपकी कल्पना निःसार है, लोग क्या कहेगे ? हजारों मनुष्य सुमार्ग पर आजावेंगे। आजकल अहिंसा तत्त्वकी ओर लोगों की दृष्टि झुक रही है सो इसका मूल कारण यह है कि अहिसा आत्माकी स्वच्छ पर्याय है। 'अहिंसा ही धर्म है। इसका अर्थ यह है कि जब आत्मामे मोहादि परिणाम नहीं रहता तब आत्मा तन्मय हो जाता है । अहिसा किसी एक जाति या एक वर्ण विशेषका धर्म नहीं है। जिस आत्मामे जिस काल तथा जिस क्षेत्रमे रागादि परिणाम नहीं होते हैं उसीके पूर्ण अहिसा धर्म होता है। आपने ही तो सुनाया था कि
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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