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________________ पर्व प्रवचनावली ३८३ पर छोटे पुरुप विरक्त होकर आत्मकल्याण कर जाते हैं। प्रद्युम्नको वैराग्य आया-दीक्षा लेनेका भाव उसका हुआ अत. राज्यसभामे बलदेव तथा श्रीकृष्णसे आज्ञा लेने गया। वहाँ जाकर जब उसने अपना अभिप्राय प्रकट किया तब वलदेव तथा श्रीकृष्ण कहते हैं कि वेटा! अभी तेरी अवस्था ही क्या है ? तूने संसारका सार जाना ही क्या है ? जो दीक्षा लेना चाहता है अभी हम तुझसे बड़े वृढ़े विद्यमान हैं । हम लोगोंके रहते तू यह क्या विचार कर रहा है ? सनकर प्रद्युम्नने उत्तर दिया कि आप लोग संसारके स्तम्भ हो अतः राज्य करो। मेरी तो इच्छा दीक्षा धारण करनेकी है। इस ससारमें सार है ही क्या जिसे जाना जाय । इस प्रकार राज्यसभासे विदा लेकर अपने अन्तःपुरमे पहुँचा और स्त्रीसे कहता हैप्रिये ! मेरा दीक्षा लेनेका भाव है । स्त्री पहलेसे ही विरक्त बैठी थी। वह कहती है जव दीक्षा लेनेका भाव है तब प्रिये ! सम्बोधनकी क्या आवश्यकता है ? क्या स्त्रीसे पूछ-पूछकर दीक्षा ली जाती है। आप दीक्षा लें या न लें, मै तो जाकर अभी लेती हूँ। यह कहकर वह प्रद्युम्नसे पहले निकल गई। दोनोंने दीक्षा धारण कर आत्मकल्याण किया और श्रीकृष्ण तथा बलदेव संसारके चक्रमे फंसे रहे । एक समय था कि जब लोग थोड़ा सा निमित्त पाकर संसारसे विरक्त हो जाते थे। शिरमें एक सफेद बाल देखा कि वैराग्य आ गया पर आज एक दो नहीं समस्त बाल सफेद हो जाते हैं पर वैराग्यका नाम नहीं आता। उसका कारण यही है कि मोहका संस्कार बड़ा प्रबल है। जिस प्रकार चिकने घड़े पर पानीकी बंद नहीं ठहरती उसी प्रकार मोही जीवोंपर वैराग्यवर्धक उपदेशोंका प्रभाव नहीं ठहरता । थोड़ा बहुत वैराग्य जव कभी आता भी है तो श्मशान वैराग्यके समान थोड़ी ही देरमे साफ हो जाता है। बाह्य और आभ्यन्तरके भेदसे. तप दो प्रकारके हैं। अनशन,
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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