SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्व प्रवचनावली ३५३ समय रामचन्द्रजीने रावणपर जो रोप नहीं किया था वह इसका उत्तम उदाहरण है। प्रशम गुण तब तक नहीं हो सकता जब तक अनन्तानुवन्धी क्रोध विद्यमान रहता है। उसके बूटते ही प्रशम गुण प्रकट हो जाता है। क्रोध ही क्यों अनन्तानुबन्धी सम्बन्धी मान माया लोभ सभी कपाय प्रशमगुणके घातक हैं। संसारसे भय उत्पन्न होना संवेग है। विवेकी मनुष्य जब चतुर्गतिरूप ससारके दुःखोंका चिन्तन करता है तब उसकी यात्मा भयभीत होजाती है तथा दुःखके कारणोंसे निवृत्त होजाती है । दुःखी मनुष्यको देखकर हृदयमे कम्पन उत्पन्न हो जाना अनुकम्पा है। मिथ्यादृष्टिकी अनुकम्पा और सम्यग्दृष्टिकी अनुकम्पामे अन्तर होता है। सम्यग्दृष्टि मनुप्य जब किसी आत्माको क्रोधादि कपायोंसे अभिभूत तथा भोगालक्त देखता है तब उसके मनमे करुणाभाव उत्पन्न होता है कि देखो वेचारा कपायके भारसे कितना दव रहा है ? इसका कल्याण किस प्रकार हो सकेगा? आप्त व्रत श्रुत तत्त्वपर तथा लोक आदि पर श्रद्धापूर्ण भावका होना आस्तिक्य भाव है। ये गुण सम्यग्दर्शनके अविनाभावी हैं। यद्यपि मिथ्यात्वकी मन्दतामे भी ये हो जाते हैं तथापि वे यथार्थ गुण नहीं किन्तु गुणाभास कहलाते हैं। आज आर्जव धर्म है । आर्जवका अर्थ सरलता है और सरलताके मायने मन वचन कायकी एकता है। मनमें जो विचार आया हो उसे वचनसे कहा जाय और जो वचनसे कहा जाय उसीके २३
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy