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________________ पर्व प्रवचनावली ३४३ हुआ, ठगनेके लिये मैं ही मिला | महादेवजीने कहा-तुमने लड़का पानेके लिये क्या किया ? पुरुषने कहा-हम लोग तो आपके वरदानका भरोसाकर ब्रह्मचर्यसे रहे। महादेवजीने हँसकर कहाभाई । मैने वरदान दिया था सो सच दिया था पर लड़का लड़केके रास्ते होगा। ब्रह्मचारीके संतान कैसे होगी ? तू ही बता, मैं आकाशसे तो गिरा नहीं देता। ऐसा ही हाल हम लोगोंका है, कल्याण कल्याणके मार्गसे ही होगा। ____ यह मोह दुखदायी है-शास्त्रोंमें लिखा है, आचार्योने कहा है, हम भी कहते हैं पर वह झूठा तो है ही नहीं। प्रयत्न जो हमारे अधूरे होते हैं। पूज्यपाद स्वामी समाधितन्त्रमे कहते हैं कि यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा । यज्जानाति न तद् दृश्यं केन साकं ब्रवीम्यहम् ॥ जो दिखता है वह जानता नहीं है और जो जानता है वह दिखता नहीं फिर मैं किसके साथ बातचीत करू ? अर्थात् किसी के साथ बोलना नहीं चाहिये यह आत्माका कर्तव्य है । वे ऐसा लिखते हैं पर स्वयं बोलते हैं, स्वयं दूसरोंको ऐसा करनेका उपदेश देते हैं। तत्त्वार्थसूत्रका प्रवचन आपने सुना । उसकी भूमिकामे उसके बननेके दो तीन कारण बतलाये हैं पर राजवार्तिकमे अललंकदेवने जो लिखा है वह बहुत ही ग्राह्य है। वे लिखते हैं कि इस सूत्रकी रचनामें गुरू-शिष्यका सम्बन्ध अपेक्षित नहीं है किन्तु अनन्त संसारमे निमज्ज जीवोंका अभ्युद्धार करनेकी इच्छासे प्रेरित हो आचार्यने स्वयं वैसा प्रयास किया है। कहनेका तात्पर्य है कि मोह चाहे छोटा हो चाहे बड़ा, किसीको नहीं छोड़ता। भगवान् ऋषभदेव तो युगके महान् पुरुष थे पर उन्होंने भी मोहके उदयमें अपनी आयुके ८३ लाख पूर्व विता दिये । आखिर, इन्द्रका इस ओर ध्यान
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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