SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ मेरी जीवन गाथा खींच कर कहा-जरा जागिये, आपका कपड़ा बदल गया है। आपका यह है वह मुझे दीजिये। धोवीके कहने पर ज्यों ही उसने लक्षण मिलाये त्यों ही उसे उसकी वात ठीक जॅची। अब उसे उस दुपट्टे से, जिसे वह अपना समझ मुँह पर डाले हुए था, घृणा होने लगी और तत्काल उसने उसे धोवीको वापिस कर दिया। आपके शुद्ध चैतन्य भावको छोड़कर सभी तो आपमे पर पदार्थ हैं परन्तु आप नींदमे मस्त हो उन्हें अपना समझ रहे हैं। स्वपरस्वरूपोपादानापोहनके द्वारा अपनेको अपना समझो और पर को पर । फिर कल्याण तुम्हारा निश्चित है। आप लोग कल्याणके अर्थ सही प्रयाण तो करना नहीं चाहते और कल्याणकी इच्छा करते हैं सो कैसे हो सकता है ? जैनधर्म यह तो मानता नहीं है कि किसीके वरदानसे किसीका कल्याण हो जाता है। यहाँ तो कल्याणके इच्छुक जनको प्रयत्न स्वयं करना होगा। कल्याण कल्याणके ही मार्गसे होगा। मुझे एक कहानी याद आती है। वह यह कि एक वार महादेवजीने अपने भक्तपर प्रसन्न होकर कहा-बोल तूं क्या चाहता है ? उसके लडका नहीं था अतः उसने लड़का ही माँगा। महादेवजीने 'तथास्तु' कह दिया। घर आनेपर उसने स्त्रीसे कहा-आज सब काम बन गया, साक्षात् महादेवजीने वरदान दे दिया कि तेरे लड़का हो जायगा। भगवान्के वचन तो झूठ होते नहीं। अब कोई पाप क्यों किया जाय ? हम दोनो ब्रह्मचर्यंसे रहे। स्त्रीने पतिकी बात मान ली पर ब्रह्मचारीके सन्तान कहाँ ? वर्षोंपर वर्षे व्यतीत होगईं परन्तु सन्तान नहीं। स्त्रीने कहा भगवान्ने तुम्हे धोखा दिया। पुरुष वेचारा लाचार था। वह फिर महादेवजीके पास पहुंचा और बोला भगवन् । दुनिया झूठ बोले सो तो ठीक है पर आप भी मठ बोलने लगे। आपको वरदान दिये १२ वर्ष होगये पर आजतक लड़का नहीं
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy