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________________ समय थपिन ३३३ कारण गिरा दिया गया था तथा उस स्थानपर नवीन मन्दिर निर्माण करानेका विचार था । मन्दिरके नीचेका भाग बड़ा मन्दिर के आधीन और ऊपर अटारी पर मन्दिर था | बड़ा मन्दिर के प्रवन्धकाने मन्दिरके बनानेमे आपत्ति की जिससे मन्दिर गिरा हुआ बहुत दिनोंसे पड़ा रहा । कारेभायजीके मन्दिर में जो रुपया या उन्होंने वह रुपया बड़ा मन्दिरके व्यवस्थापक श्री लक्ष्मीचन्द जी मोदीको दे दिया और कहा कि आप ही वनवा दो। बहुत समयसे काम रुका था और लोग प्रेरणा भी बहुत करते थे इसलिये ज्येष्ठ शुक्ला ६ को नवीन मन्दिर बनवानेका मुहूर्त किया गया । मुझे भी लोग ले गये । जन समुदाय बहुत था । लोगोको प्रसन्नता थी कि अब मन्दिर वन जावेगा परन्तु लोगों की परिणति निर्मल नहीं अतः मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह मन्दिर शीघ्र वन जावेगा । धर्मायतनोंके विषय में जो छल-क्षुद्रताका व्यवहार करते हैं वे आत्मवञ्चना करते हैं और उसका कटुक परिपाक उन्हे भोगना पड़ता है । इस पापके करनेवाले कभी फलते फूलते नहीं देखे गये । श्री १०५ क्षुल्लक क्षेमसागरजी चतुर्मास करनेके लिए जबलपुर चले गये । हमारा भी विचार था परन्तु हम लोगोंका संकोच नहीं तोड़ सके और सागरमे ही रह गये | आषाढ़ शुक्ला १४ के दिन हमने सागरमें चातुर्मासका नियम ग्रहण किया तथा कार्तिक सुदी २ तक दुग्ध घृत नमक तथा बादामका रोगन मात्र इतने रस लेनेका नियम किया । आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा सं० २००६ को विद्यालय में गुरुपूर्णिमा का उत्सव था । समस्त छात्रवृन्द तथा अध्यापकगण एकत्रित थे। मुझे भी बुलाया गया। छात्रोंके कविता पाठ तथा व्याख्यान आदि हुए। अध्यापकोंके भी भाषण हुए। मुझे यह दृश्य देख बहुत
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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