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________________ सागर ३२७ यहाँकी समग्र जनताको लाभ मिल सके इस उद्देश्यसे आठ आठ दिन समस्त मन्दिरों में प्रवचनका क्रम जारी किया। पहले कटराके मन्दिरमें प्रवचन हुआ। फिर चौधरनबाईके मन्दिरमें, फिर सिंघईजीके मन्दिरमें। इसी क्रमसे सव मन्दिरोंमे यह क्रम चलता रहा । यहाँ तारण समाजका भी चैत्यालय है । उस आम्नायके लोगोंमें प्रमुख सेठ भगवानदासजी शोभालालजी वीड़ीवाले, मुन्नालालजी वैशाखिया तथा मथुराप्रसाद जी आदि है। इन सबके आग्रहसे चैत्यालयमें भी प्रवचन हुए। चैत्र शुक्ला १३ सं० २००६ को वर्णी भवन ( मोराजी भवन) मे महावीर जयन्तीका उत्सव था। पं० दयाचन्द्रजी, माणिकचन्द्रजी, पन्नालालजी आदि के व्याख्यान हुए। कुल इतर समाजके वक्ता भी बोले । जनता अधिक थी। समारोह अच्छा हुआ। दूसरे दिन सर्वधर्मसम्मेलनका आयोजन था जिसमे जैन हिन्दू मुसलमान और ईसाई धर्मवालोंके व्याख्यान हुये। अन्तमे मैंने भी बताया कि धर्म तो आत्माकी निर्मल परिणतिका नाम है। काम क्रोध लोभ मोह आदि विकार आत्माकी उस निर्मल परिणतिको मलिन किये हुए हैं। जिस दिन यह मलिनता दूर हो जायगी उसी दिन आत्मामें धर्म प्रकट हुआ कहलायेगा । किसी कुल या जातिमे उत्पन्न होनेसे कोई उस धर्मका धारक नहीं हो जाता । कुलमें तो शरीर उत्पन्न होता है सो इसे जितने परलोकवादी हैं सब आत्मासे जुदा मानते हैं। शरीर पुद्गल है। उसका धर्म तो रूप रस गन्ध स्पर्श है। वह आत्मामे कहाँ पाया जाता है ? आत्माका धर्म ज्ञान दर्शन क्षमा मार्दव आर्जव आदि गुण हैं। ये सदा आत्मामे पाये जाते हैं। आत्माको छोड़कर अन्यत्र इनका सद्भाव नहीं होता। इतना तो सब मानते हैं कि इस समय संसारमे कोई विशिष्ट ज्ञानी नहीं। विशिष्ट ज्ञानीके अभावमें लोग अपने-अपने ज्ञानके
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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