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________________ ३२६ मेरी जीवन गाथा किया। यहाँ सव जैन जनता आ गई। बालिकाओंने मंगल गान गाया। पश्चात् पं० अमरचन्द्रजीने गान पढ़ा। उसके उपरान्त पं० श्रुतसागरजीने ५ मिनट व्याख्यान दिया । सुनकर लोग गद्गद् कण्ठ हो गये । पश्चात् वहुत कठिनतासे चल पाये। आधा मील तक जनता आई । यहाँसे हमील चलकर सानोधा आ गये। यहाँ पर ८-१० घर जैनी हैं। १ मन्दिर है । अगले दिन भोजन कर सागरके लिये प्रस्थान कर दिया और शामके ६ बजे तक गोपालगंज (सागर) पहुंच गये। चैत्र कृष्णा ५ को गोपालगंजमे आहार किया। ३ बजे प्रचुर जनताके साथ गोपालगंजसे चले और ४ बजे कटरा बाजार पहुँच गये । यहाँपर २ दो मन्दिर हैं। उनके दर्शन किये। मन्दिर रन्छिता पूर्ण तथा निर्मल हैं, विस्तृत भी है परन्तु जनसंख्या बहुत होनेम स्थानमे कमी पड़ जाती है। एक मन्दिर प्राचीन हैं। दूसरा स्त्रक सि. अनन्तरामजी दलालकी धर्मपत्नीने अपने मकानको मन्दिर रूपमें परिणतकर कुछ समय हुआ बनवाया है । मन्दिरों दर्शनकर वेदान्तीपर श्री गुलाबचन्द्रजी जोहरीका जो वाग है उसमें निवास किया। आपने यह बाग उदासीनाश्रमके लिये प्रदान किया है। उदासीनाश्रम संस्था इसीमे हैं। रात्रिको स्वागत समारोह उद्देश्यसे मोराजी भवनमे सभा एकत्रित हुई। ___ सागर बड़ी वस्ती है। जैनियों के हजारसे ऊपर घर है।' बड़े १६ मन्दिर हैं। संस्कृत विद्यालय है ही। महिलाश्रग भी सुन चुका है। लोगोंमे सरलता है। यहाँ हमारा बहुत समय चीन प्रा है। वाईजीका भी यही निवाम था अतः घूम फिरपर में वही या जाता था। यहाँका जलवायु हमारे शरीरके अनमूलपना लामा भद्रता भी अधिक है। यहाँ पाकर कुछ मम लिंगभगा। सम्बन्धी आकुलतासे मुक्त हो गया ।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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