SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पपौरा और अंहार क्षेत्र ३०० विद्यालय हो जिसमे १०० छात्र अध्ययन कर सकें । पठनक्रम नवीन पद्धतिसे होना चाहिये जिसमे धर्मका शिक्षण अनिवार्य रहे । मेला समाप्त होनेपर जनता चली गई। वातावरण शान्तिमय हो गया । प्रातःकाल संवरका स्वरूप वाचा । वास्तवमें मोक्षमार्ग संवर ही है । अनादिकालसे हमने मोहके वशीभूत होकर आस्रवको ही अपनाया है। आत्मतत्त्वकी श्रद्धा नहीं की। इसीका यह फल हुआ कि निरन्तर पर पदार्थों के अपनानेमे ही समय गमाया । यद्यपि यह पदार्थ आत्माके स्वरूपसे भिन्न है पर मोही जीव उसे निज मानकर अपनानेकी चेष्टा करता है। आत्माका स्वभाव देखना जानना है परन्तु क्रोधादि कषाय उसके इस स्वभावको कलुपित करते रहते हैं। इस कलुषतासे यह आत्मा निरन्तर व्यग्र रहती है । जानका कार्य इतना है कि पदार्थको प्रतिभासित कर दे। ज्ञान पदार्थरूप त्रिकालमें नहीं होता। जिस प्रकार दर्पण घट-पटादि पदार्थको प्रतिभासित कर देता है परन्तु घट-पटादि रूप नहीं होता। दर्पणमें जो घट-पटादि प्रतिभासित हो रहे हैं वह दर्पणका ही परिणमन है, दर्पणकी स्वच्छताके कारण ऐसा जान पड़ता है इसी प्रकार आत्माके ज्ञानगुणमें उसकी स्वच्छताके कारण घट-पटादि पदार्थ प्रतिभासित होते हैं परन्तु ज्ञान तद्रूप नहीं होता । मेलाके बाद ४-५ दिन पपौरामें निवास किया। परिणाम अत्यन्त उज्ज्वल रहे। __मार्गशीर्ष शुक्ला १३ सं० २००८ को २ बजे यहाँसे चलकर ३ बजे टीकमगढ़ पहुँच गये। आज यहाँके कालेजमें प्रवचन था। कालेज बहुत ही भव्य स्थानपर बना हुआ है । सामने महेन्द्रसागर सरोवर है तथा उसके बाद अटवी । ३ मीलपर ७५ जिन मन्दिरोंसे रम्य पपौरा क्षेत्र है। यह सब पूर्व दिशामे है। पश्चिममे महेन्द्र बाग है, उत्तरमें टीकमगढ़ नगर है और दक्षिणमें कुण्डेश्वर क्षेत्र
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy