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________________ २०१ तीव्र वेदना जावो परन्तुं तुमने अवहेलना की और एक दम आज्ञा दे दी कि हम अपने वादाके अनुसार टीकमगढ़ जायेंगे। कितना निराधार साहस ? यदि प्रतिज्ञा ही करना थी तो यह करता कि यदि नीरोग रहा तो आपके उत्सवमें सम्मिलित होऊँगा। परन्तु तुमको पुरुषार्थका इतना मद कि व्यर्थकी प्रतिज्ञा लेकर अपने आपकी वञ्चना की। मलेरियाकी प्रबलता तथा फोड़ाकी तीव्र वेदनासे चित्तमें बहुत खिन्नता हुई। उपचारके लिये फोड़ा पर सिट्टीकी पट्टी बाँधी पर उससे पीड़ामें रञ्च मात्र भी कमी नहीं हुई। हमारी वेदना देख सब लोग दुःखी थे। टीकमगढ़से डाक्टर सिद्दी साहब आये । फोदा देखकर उन्होंने कहा कि फोड़ा खतरनाक है। विना आप्रेशन अच्छा होना असंभव है और जल्दी आप्रेशन न किया गया तो इसका विष शरीरमें अन्यत्र फैल जानेकी संभावना है। डाक्टरकी बात सुनकर सब चिन्ताले पड़ गये। सब लोगोंने आप्रेशन करानेकी प्रेरणा की परन्तु मैने दृढ़तासे कहा कि कुछ हो मांसभोजीसे मैं आप्रेशन नहीं कराना चाहता । डाक्टरने मेरी बात सुनी तो उसने बड़ी प्रसन्नतासे कहा कि मैं जीवन पर्यन्तके लिए मांसका त्याग करता हूँ। आप्रेशनकी तैयारी हुई तो डाक्टर बोला कि आप्रेशनमे समय लगेगा। विना कुछ सुँघाये आप्रेशन कैसे होगा ? मैंने कहा कि कितना समय लगेगा ? उसने कहा कि १५ मिनट । मैंने कहा- आप निश्चिन्ततासे आप्रेशन कीजिये, सुँघानेकी चिन्ता न करें। यह कह कर मै निश्चल पड़ रहा। १५ मिनटमे आप्रेशन हो गया। फोड़ाके भीतर जो विकृत. पदार्थ था वह निकल गया इसलिये शान्तिका अनुभव हुआ। आप्रेशनके समय पं० फूलचन्द्रजी पासमें थे। दीपावलीके बाद मनोहरलालजी वणी भी आगये थे।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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