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________________ मुरारसे आगरा अब यह कथा पुराणोंमे रह गई है। इस कथाको जो कहे वह मनुप्योंकी गणनामे गणनीय नहीं । यही नहीं, लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि इस उपदेशने हमारे भारतवका पतन कर दिया। सभ्य वही जो द्रव्यको अर्जन कर सके और अच्छे वस्त्रादिकोंसे सुसज्जित रहे । स्त्री और पुरुपोंमे कोई अन्तर न देखे। जैसे आप भ्रमणको जाता है वैसे ही स्त्रीगण भी जावे। जिस प्रकार तुम्हे सबसे भापण करनेका अधिकार है उसी तरह स्त्री समाज को भी हो। अस्तु, विषयान्तरको छोड़ो। सभाका काल पूर्ण होने पर कालेज देखा, व्यवस्था बहुत सुन्दर थी, मटरमल जी वैनाडाका अनुशासन प्रशंसनीय है । यहाँ पर एक छात्रावास भी है तथा छात्रावासमे जो छात्र रहते हैं उनके धर्मसाधनके अर्थ १ सुन्दर मन्दिर भी है। उसमें एक बृहत्मूति है जिसके दर्शनसे चित्त शान्त हो जाता है। यह सर्व कार्य वैनाडा जी के द्वारा सम्यनीतिसे चल रहा है। तदनन्तर गाजे बाजेके साथ अन्य जिन मन्दिरोंके दर्शन करते हुए वेलनगञ्जकी जैन धर्मशालामें ठहर गये। धर्मशालामे उपर मन्दिर है। उसमें एक बिम्ब बहुत ही मनोज है । दर्शन करनेसे अत्यन्त शान्ति आई। यह विम्ब श्री पद्मचन्द्र जी चैनाड़ा और उनके सुपुत्र मटरूमल्ल जी वैनाड़ा ने शाहपुर-गणेशगंज (सागर) में पञ्चकल्याण के समय प्रतिष्ठित कराकर यहाँ पधराया है। इसके दर्शन कर भव्योंको जो आनन्द आता है वह वे ही जानें। मन्दिरमे दो वेदिकाएं और भी हैं। धर्मशालाके बगलमे श्री स्वर्गीय मूलचन्द्र सेठकी दुकान है उसमे श्री मगनमल्ल जी पाटनी के स्वामी हैं। आप अत्यन्त सज्जन हैं। आप और आपकी धर्मपत्नी-दोनों प्रातःकाल जिनेन्द्र देव का अर्चन करते हैं। आपके दो सुपुत्र हैं वड़े का नाम श्री कुँवर नेमिचन्द्र है । दोनों ही सुयोग्य हैं । नेमिचन्द्र जीकी अध्यात्म
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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