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________________ फिरोजाबाद में विविध समारोह २२६ 1 अज्ञानी होकर ज्ञानकी खोजमे इधर-उधर भटक रहा है । यह जीव अपनी ओर तो देखता ही नहीं है केवल परकी ओर देखता है। यदि अपनी ओर भी देख ले तो इसका कल्याण हो जावे । एक आदमी था, प्रकृतिका भोला था, आत्मज्ञानकी इच्छासे किसी विद्वान्के पास गया और आत्मज्ञानकी भिक्षा मागने लगा । विद्वान् समझदार था इसलिये उसने विचार किया कि यह सीधा है अतः इस तरह नहीं समझेगा। उसने कह दिया कि उत्तरमे एक तालाव है । उसमें एक मगर रहता है, उसके पास जाओ। वह तुम्हें आत्मज्ञान देगा | भोला आदमी वहाँ गया और मगरसे बोला कि तुम, आत्मज्ञान देते हो ? मुझे भी दे दो । मगरने कहा हाँ देता हूँ । अनेको मानवों को मैंने आत्मज्ञान दिया है। तुम भी ले जाओ पर एक काम करो मुझे जोरकी प्यास लग रही है अतः सामनेके कुएसे एक नोटा पानी लाकर पहले मुझे पिलाओ पश्चात् पियास शान्त होनेपर तुम्हें आत्मज्ञान दूँगा । आदमीने कहा कि यह मगर रात दिन तो पानीमें रह रहा है फिर भी कहता है कि मैं पिपासातुर हूँ, सामने कूपसे १ लोटा पानी ला दो । यह तो महामूर्ख है । यह क्या आत्मज्ञान देगा ? उस विद्वानने मुझे बड़ा धोखा दिया । मगरने कहा जिस प्रकार तुम हमारी ओर देख रहो हो उसी प्रकार अपनी ओर भी तो देखो । जिस प्रकार मैं जलमे रह रहा हॅू उसी प्रकार तुम भी तो अनन्त ज्ञानके बीच रह रहे हो। जिस तरह मुझे कूपके जलकी पिपासा है उसी तरह तुम्हे भी मुझसे आत्मज्ञानकी पिपासा है । भोला आदमी समझ गया और तत्काल चिन्तन करने लगा कि हो । मैंने आजतक अपने स्वभावकी ओर दृष्टि नहीं दी और दरिद्र बन कर चौरासी लाख योनियोंमें भ्रमण किया । 1 महाराजके प्रवचनके वाद सभा समाप्त हुई । सबने आहार ग्रहण किया । माघ शुक्ला ११ सं० २००७ को मध्याह्न के बाद
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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