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________________ फिरोजाबादकी ओर २१३ प्रयत्न सफल नहीं हो सका था। अब मार्गशीर्ष शुक्ला ६ सं० २००७ को पाठशालाका उद्घाटन श्री पं० झम्मनलालजीने मङ्गलाष्टक पूर्वक सानन्द कराया। आज श्री राजकृष्णजी, पं० राजेन्द्रकुमारजी तथा श्री छदामीलालजी आये । सबका उद्देश्य फिरोजाबादमें हीरक जयन्ती महोत्सव तथा 'वणी अभिनन्दन ग्रन्थ समारोहकी स्वीकृति प्राप्त करना था। राजकृष्ण हृदयसे बात करते हैं। पण्डित राजेन्द्रकुमारजी चतुर व्यक्ति हैं । समाजका हित चाहते हैं तथा कार्य भी उसीके अनुरूप करते हैं किन्तु अन्तरङ्ग उनका गम्भीर है। उसका निश्चय करना प्रत्येक व्यक्तिका कार्य नहीं। कुछ हो, जो वह कार्य करते हैं समाजके हितकी दृष्टिसे करते हैं। मार्गशीर्ष शुक्ल ११ को पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागरवाले आये। यह निश्चय हुआ कि अभिनन्दन ग्रन्थका समारोह फीरोजाबादमें हो। हमने यह निश्चय कर लिया कि फिरोजाबादमें उत्सव होनेके बाद सागर जावेंगे। आज ही हम लोग भिण्ड छोड़कर फूफ आ गये । यह स्थान भिण्डसे ७ मील है। दूसरे दिन फूफसे चल कर चम्बल आये। यहाँ एक प्राचीन मन्दिर है । ३ बजे चम्बल पार हुए। ३ फाग पानीमें चलना पड़ा तदनन्तर ३ मील चल कर उदीमें आ गये। स्कूलमें रात्रिको ठहर गये। प्रातःकाल सामायिकका उद्यम किया। इतनेमें श्री क्षुल्लक मनोहरजीने कहा हम खुर्जा जावेंगे। मैंने कहा ठीक है। मनमें विचार आया कि मैं संघका आडम्बर कर लोगोंके संयोग वियोगके समय व्यर्थ ही हर्ष विषादका पात्र बनता हूँ अतः जितने जल्दी बन सके यह संघका आडम्बर छोड़ देना चाहिये । परका समागम सुखद नहीं क्योंकि परके समागममें अनेक विकल्प होते हैं । विकल्प ही आकुलताके जनक हैं । आत्मामे ज्ञान है उसके द्वारा वह उस विकल्पके अनेक अर्थ स्वरुचिके
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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