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________________ २१२ मेरी जीवन गाथा समझते । मूर्तिपूजा उन्हे पसन्द नहीं। न करें पर संसारकी मूतियों और मन्दिरोंको ध्वस्त करनेमे कौन सा धर्म है ? बुद्धिमें नहीं आता। फिरोजाबादकी और श्री क्षुल्लक वलदेवसादजी जिनका दूसरा नाम संभवसागर था तथा क्षुल्लक मनोहरलालजी इटावासे ही साथ हो गये थे। भिण्डमे पहुँचने पर वहाँ जनताने संघका अच्छा स्वगत किया। श्री नेमिनाथ स्वामीके मन्दिरमें श्रीयुत क्षुल्लक मनोहरलालजीका प्रवचन हुआ। आपने अति सरल शब्दोंमे, आत्मामें जो रागादिक होते हैं उनका विवेचन किया। इसी प्रकरणमें आपने यह भी कहा कि कार्यकी उत्पत्ति सामग्रीसे होती है। सामग्रीमे एक उपादान और इतर सहकारी कारण होते हैं जो स्वयं कार्यरूप परिणमे वह तो उपादान है और जो सहायक हो पर तद्रप परिणमन नहीं करता वह सहकारी होता है । सहकारी अनेक होते हैं। जैसे कुन्मती उत्पत्तिमे मिट्टी उपादान और कुम्भकारादि सहकारी होते हैं । इन सहकारियोंमे चेतन भी होते है और अचेतन भी। सहकारी कारण चाहे चेतन हो चाहं अचेतन, बलात्कारसे कार्यको उत्पन्न नहीं करते किन्तु उनकी सहकारिता अति आवश्यक है। प्रवचन मुन जानता बहुत प्रसन्न हुई। एक दिन श्रादिनाथ स्वामीके मन्दिरनं भी प्रवचन हुआ। पिछले समय जब यहाँ आये थे तब पाटसाला चालू करनेका प्रयत्न कुछ लोगोंने किया था परन्तु परस्परके बैमनस्वसे या
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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