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________________ १७६ मेरी जीवन गाया जीवन व्यतीत हो गया पर प्रवृत्तिमें अन्तर क्यों नहीं आया ? यहाँ तो यह बात है कि शास्त्रमे जो लिखा सो ठीक, और वक्ता जा कह रहा सो ठीक पर काम हम वही करेंगे जो करते चले आ रहे हैं। एक कहावत है कि आप कहे सो ठीक और वे कहे सो ठीक पर नरदाका द्वार यहीं रहेगा। अस्तु, पर्वभर लोगोंमे अच्छा उत्साह रहा। उदासीनाश्रम और संस्कृत विद्यालयका उपक्रम चैत्र कृष्ण ३ संवत् २००६ को प्रातःकाल यहाँ उदासीनाश्रमकी स्थापना हो गई। श्री लक्ष्मणप्रसादजीने १००) मासिक और कई महाशयोंने मिलकर १५०) मासिक रुपये दिये । ४ उदासीन भाई आश्रममे प्रवृष्ट हुए साथ ही बहुतसे मनुप्योंके भाव इस ओर ऋजु हुए परन्तु थोड़ी देरकी उफान है घर जाकर भूल जाते हैं। पं० फुलचन्द्रजी बनारससे आये थे वे आज बनारस वापस चले गये। आप स्वच्छ वात करते हैं किन्तु समयकी गतिविधि देखकर व्यवहार करें तब उनका प्रयास सफल हो सकता है। पं० पन्नालालजी काव्यतीर्थ भिण्ड गये थे वहाँसे उन्हें वणींचेवरके लिए ५०१) मिले थे यह स्पये पं० फूलचन्द्रजीके हाथ भेज दिये। पं० मन्मनलालजी तर्कतीर्थ कलकत्तावाले श्राये। प्रचीन विद्वानोममे हैं व्युत्पन्न भी हैं परन्तु प्रकृतिके तीच्ण हैं। ३ छात्रोंने संस्कृन पढ़नेका भाव प्रकट किया। संस्कृत भाषा उत्तम भापा है जैनागमका भान दम भापार अध्ययनके बिना मगम रीतिने लभ्य नहीं परन्तु याज लोगों इष्टि पैसेकी ओर लग रही है। रम भाषा अध्ययन में पैमाफी
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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