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________________ ३ मुरारसे आगरा सत्कार किया तथा सोलापुरकी मुद्रित भगवती आराधना की एक प्रति स्वाध्याय के अर्थ प्रदान की । यहाँ पर सिद्धान्त विद्यालय बहुत प्राचीन संस्था है । इसकी स्थापना स्वर्गीय श्री गुरु गोपालदास जीने की थी। इसके द्वारा बहुत निष्णात विद्वान् निकले । जिनने भारत वर्ष भरमे कठिन से कठिन सिद्धान्त शास्त्रोको सरल रूपसे पठन क्रममे ला दिया । १ बजे दिनसे सार्वजनिक सभा थी, प्रसंग वश यहाँ पर मन्दिरके निमित्तसे लोगोंमे जो परस्पर मनोमालिन्य है उसको मिटानेके लिये परिश्रम किया परन्तु कुछ फल नहीं हुआ । अगले दिन भी प्रवचनके अनन्तर संगठनकी बात हुई परन्तु कोई तत्त्व नहीं निकला। जब तक हृदयमें कषाय रूप विषके करण विद्यमान हैं तब तक निर्मलताका आना दुर्भर है। मैं तो यह विचार कर तटस्थ रह गया कि संसारकी दशा जो है वही रहेगी, जिन्हे आत्मकल्याण करना हो वे इस चिन्ता को त्यागें, कल्याणके पास स्वयं पहुँच जायेंगे । मोरेनामे ३ दिन रहनेके बाद धौलपुर की ओर चल दिये । मार्ग एक ग्रामके वाह्य धर्मशाला थी उसमें ठहर गये । धर्मशाला का जो स्वामी था उसने सर्व प्रकार से सत्कार किया । उसकी अन्तरङ्ग भावना भोजन करानेकी थी परन्तु यहांकी प्रक्रिया तो उसके हाथका पानी पीना भी आगम विरुद्ध मानती है । यद्यपि आगम यही तो कहता है कि जिसे जैनधर्मकी श्रद्धा हो और जो शुद्धता पूर्वक भोजन बनावे ऐसे त्रिवर्णका भोजन मुनि भी कर सकता है । अब विचारो जब उसकी रुचि आपको भोजन कराने की हुई तब आपके धर्म में स्वयं श्रद्धा हो गई। जब श्रद्धा आपमे हो गई तब जो प्रक्रिया आप बताओगे उसी प्रक्रियासे वह अनायास आपके अनुकूल भोजन बना देगा । परन्तु यहां तो रूढिवाद की इतनी महिमा है कि जैनधर्मका प्रचार होना कठिन है । अस्तु,
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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