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________________ १५० मेरी जीवन गाथा समान है । तोता, राम राम रटता है परन्तु उसका तात्पर्य नहीं समता अतः जो कुछ रटो उसको समझो । समभोके मायने तदनुसार प्रवृत्ति करो' । यहाँसे ३ मील चल कर तोपखाना गये । यहाँ पर भोजन किया । मध्यान्होंपरान्त शास्त्र प्रवचन किया लोग शान्ति पूर्वक सुनते रहे । सर्व मनुष्य सुख चाहते हैं परन्तु सुख प्राप्ति दुर्लभ है इसका मूल कारण उपादान शक्तिका विकाश नहीं। वक्ताओंको यह श्रभिमान है कि हम श्रोताओं को समझा कर सुमार्ग पर ला सकते हैं और श्रोताओंकी यह धारणा है कि हमारा कल्याण वक्ता आधीन है पर बात ऐसी नहीं है । तोपखानामे १५ घर जैनियोंके हैं प्राय अंग्रेजी विद्याके पण्डित हैं स्वाध्यायमे रुचि नहीं । परन्तु यह सभी चाहते हैं कि येन केन उपायसे संसार बन्धनसे छूटें । इसके अर्थ महान् प्रयास भी करते हैं। मर्यादासे अधिक त्यागियों और पण्डितों की शुश्रुषा करते हैं यही समझते हैं कि त्यागी और पण्डितोंके पास धर्म की दुकान है उनका जितना आदर सत्कार करेंगे उतना ही हमको धर्म का लाभ होगा | • किन्नु होगा क्या सो कौन कहे ? कहावत तो यह याद आती हैं कि 'फुट्टी देवी ऊँट पुजारी' । दूसरे दिन मिलमे प्रवचन किया पश्चात् वहाँसे चलकर वोडिंग में आये सामायिक की । १२३ बजे श्री पद्मपुराणका स्वाध्याय किया प्रकरण था श्री रामचन्द्रजीकी विजय हुई । यथार्थमें बात यही है - न्याय मार्ग में जिनकी प्रवृत्ति होती है उनकी अन्तमें विजय होती है । अन्याय मार्गमें जो प्रवृत्त होते हैं वे ही न्याय मार्गम चलनेवालोंसे पराभव प्राप्त करते हैं । अतः मनुष्योंको चाहिये कि न्याय मार्ग से चलें । संसार दुःख मय है इसका कारण आत्मा पर पदार्थको निज मानकर नाना विकल्प करता है । अगले दिन नगरमे
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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