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________________ पावन दशलक्षण पर्व दशलक्षण पर्व आ गया। कटनीसे श्री पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री आ गये । लाल मन्दिरमै विशाल मण्डपका आयोजन हुआ। प्रति दिन १ बजेसे मण्डपमे पं० जगन्मोहनलालजीका प्रवचन होता था। अनन्तर कुछ हम भी कह देते थे। जैन समाजमे दशलक्षण पर्वका महत्त्व अनुपम है। भारतमे सर्वत्र जहाँ जैन रहते हैं वहाँ इस समय यह पर्व समारोहके साथ मनाया जाता है। पर्वका अर्थ तो यह है कि इस समय आत्मामे समाई हुई कलुषित परिणतिको दूरकर उसे निर्मल बनाया जाय पर लोग इस ओर ध्यान नहीं देते । बाह्य प्रभावनामे ही अपनी सारी शक्ति व्यय कर देते हैं। प्रारम्भके दिन जब मेरा विवेचनका अवसर आया तब मैंने कहा कि यद्यपि आज उत्तम क्षमाका दिन है परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि आज मार्दव धर्म धारण नहीं करना चाहिये । धर्म तो प्रत्येक दिन सभी धारण करनेके योग्य हैं। फिर क्षमा आदिका जो क्रम बताया है वह केवल निरूपणकी अपेक्षासे बताया है। क्षमाधर्म क्रोध कपायपर विजय प्राप्त करनेसे होता है । क्रोध कषायके उदयमे यह आत्मा स्वात्मनिष्ठ रत्नत्रयके विकाशको रोक देता है। देखो, उपशमसम्यग्दृष्टिका काल जब जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टसे ६ आवलि प्रमाण बाकी रह जाता है तब यदि अनन्तानुवन्धी क्रोध, मान, माया या लोभमेसे किसी एक का उदय आ जावे
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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