SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरी जीवन गाथा ७ मील चलकर ९ बजते वजते हम लोग अभीष्ट स्थान पर पहुँच गये। स्नानादिसे निवृत्त हो स्वाध्याय किया पश्चात् भोजन किया। भोजनके वाद कथोपकथन हुआ। प्रतिदिन यही चर्चा होती है कि राग-द्वेष-मोह संसारके मूल कारण हैं। इन तीनोंमे मूल मोह है। इसके विना राग-द्वपकी प्रधानता नहीं। आगामी दिन प्रातः ८ बजे जगाधरी आ गये। सर्व समाजने स्वागत किया। यह व्र० सुमेरुचन्द्रजी भगतका ग्राम है। ६ वजे श्री मन्दिरजीमे चुटक पूर्णसागरजीका व्याख्यान हुआ। ५ मिनट मेरा भी भापण हुआ। जनताको हसी आ गई। हास्यका कारण वृद्धावस्था है। वृद्वावस्थामे जो कथा मनुष्य कहता है वह प्रायः प्रत्येक विषयमें स्खलित निकलती है। किन्तु उसका अभिप्राय निर्मल रहता है, अत: आदरका स्थान हो जाती है। मध्यान्हके ३ बजे ग्रामसभा हुई । विशेप व्याख्यान हुए। एक शास्त्रीका व्याख्यान बहुत मार्मिक हुआ। अगले दिन से ६ बजे तक प्रवचन हआ। प्रवचन में वहुतसे मनुष्य आये। ब्राह्मण भी बहुत अाये । १ शास्त्रीजी व १ ज्योतिपीजी भी आये जो जैनधर्मकी पदार्थ निरूपणकी गैलीसे वहुत प्रभावित हुए। अन्य मनुष्य भी आये । उनको भी बहुत हर्प हुआ। जैनधर्मकी प्रणालीसे मभी प्रभावित हुए। अन्तरङ्गमे निर्मलता हो तो तत्व निरूपण रुचिकर होता है तथा जिज्ञासाको वृद्धिगत करता है, अन्यथा उत्तमसे उनम नत्र निरूपण अरुचिकर हो जाता है तथा द्वेष व मात्सर्यको वृद्धिगत करने लगता है। कई मानवोंने ब्रामचर्य व्रत लिये तथा न्त्री समाउने महीन वनोंके परिधानका त्याग किया। वंशाग्न सुटरी १ का जगाधरीसे ५ मील चलकर रत्नपुर या गये। यहाँ सुगनिलालरी यहाँ भोजन किया। श्रापके भाईने १००२) म्गाबाद विशालय बनारनको प्रदान किया। ४ चीफ जगाधरीसे भी माय थे। गया
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy