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________________ ७६ दिल्लीकी ओर लालजी कोठियाने सुनाई। इसके अनन्तर श्री जयभगवान्जी वकीलने प्राचीन धर्मोंमे जैनधर्मकी विशेषता वतलाई । आपका तुलनात्मक अध्ययन प्रशंसनीय है। अन्तमे मैंने भी कुछ कहा। आगामी दिन कन्या विद्यालयका वार्षिकोत्सव हुआ। लोगोकी बहुत भीड़ थी। रिपोर्ट आदि सुनानेके बाद अपील हुई। मन्त्री महोदयने १००१) स्वयं दिये तथा ३०००) और हो गये। लोगोंने विशेष ध्यान नहीं दिया अन्यथा १००००) हो जाते । पुरुषोंकी अपेक्षा महिलावर्गमे धार्मिक रुचि अधिक है। उसका कारण है कि इनका वाह्य सम्पर्क नहीं है । आजका मनुष्य तो बाह्य सम्पर्कके कारण धर्मसे च्युत होता जा रहा है। उसे धर्म आडम्बर मात्र जान पड़ने लगा है। यदि प्रारम्भसे मनुष्य पर अपना रङ्ग चढ़ जावे तो फिर दूसरा रङ्ग नहीं चढे, परन्तु लोग प्रारम्भसे ही अपनी सन्तानको निज धर्मके रङ्गसे विमुख रखते हैं। परिणाम उसका जो होता है वह सामने है। अस्तु, समयका प्रवाह और लोगोंकी रुचि भिन्न भिन्न प्रकार है । दिल्ली की ओर वैशाख वदी १३ सं० २००६ को प्रात काल ५३ वजे सरसावासे चल पड़े मील तक १०० मनुष्य और स्त्री समाज पहुंचानेके लिये आया जिसे बड़े आग्रहसे लौटा पाया। यहाँसे
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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