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________________ ( 27 ) उद्गत तथा सर्व-सेवा-संघ-प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। डिमाई साइज के 276 पृष्ठ, जैकेट कवर-युक्त सुन्दर वाइण्डिग, मूल्य 20) / कि सन्त विनोबा के शब्दों में गायागार कमी मेरे जीवन में मुझे अनेक समाधान प्राप्त हुए हैं। उनमें आखिरी, अन्तिम समाधान जो शायद सर्वोत्तम समाधान है, इसी साल प्राप्त हुअा। मैंने कई दफा जैनों से प्रार्थना की थी कि जैसे वैदिक धर्म का सार गीता में सात सौ श्लोकों में मिल गया है, बौद्धों का धम्मपद में मिल गया है, जिसके कारण ढाई हजार साल के बाद भी बुद्ध का धर्म लोगों को मालुम होता है, वैसा जैनों का होना चाहिये। मै बार बार उनको कहता रहा कि आप सब लोग, मुनिजन इकट्ठा होकर चर्चा करो और जैनों का एक उत्तम, सर्वमान्य धर्मसार पेश करो। आखिर वर्णाजी नामका एक 'बेवकूफ' निकला और बाबाकी बात उसको जॅच गई। उन्होंने 'जैनधर्म-सार' नामकी एक किताब प्रकाशित की। उसपर चचाँ करने के लिये बाबाके अाग्रह से एक संगीति (conference)बैठी, जिसमें मुनि, आचार्य और दूसरे विद्वान-श्रावक मिलकर लगभग तीन सौ लोग इकट्ठे हुए। बार बार चर्चा करके फिर उसका नाम भी बदला, रूप भी बदला। आखिर सर्वानुमति से 'संमणसुत्त' बना, जिसमें 756 गाथायें है / एक बहुत बड़ा कार्य हुआ जो हजार पन्द्रह सौ साल में हुआ नहीं था। - सन्त विनोबा भावे जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (1670) :कर सकल दिगम्बर जैन वाङ्गमयका सुसंयोजित संग्रह है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ है / 4 खण्डोंमें विभक्त डबल साइज के 2325 पृष्ठ, जैकेट कवर युक्त सुन्दर क्लाथ बाइन्डिग, मूल्य पूरे सैट का 210), छूट काटकर 150) / द्वितीय सस्करण संशोधित होकर, पंचम खण्ड शब्दानुक्रमणिका (Index)
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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