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________________ मारमा २. उद्गार कमाल ककृलकी कि समय-समय पर विद्वानों तथा मनीषियों ने आपके प्रति जो अपने उद्गार ध्यक्त किये हैं, उनमें से कुछ का उल्लेख करता हूँ : (१) पूज्य श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी के अनुभवपूर्ण तथा आडम्बरहीन सरल ज्ञान से लाभान्वित होने के लिये जब अादरणीय श्री जिनेन्द्रजी सन् १९५८ में यहां (ईसरी) पधारे उसी समय मेरी उनसे प्रथम भेट हुई । खद्दर की सफेद धोती-कुत्त में लिपटी हुई उनकी आडम्बर-शून्य सीधी-सादी मूर्ति ने चित्त को बलात् अपनी ओर आकर्षित कर लिया। आप गत एक वर्ष से (सन् १९७२ से ) आश्रम में ही मौन-साधना में अपना समय यापन कर रहे हैं । शरीरसे अत्यन्त कृश होकर भी आप ऐसे दृढ़-संकल्पी हैं कि जिस कार्यको अनेकों विद्वान् मिलकर युगों में पूर्ण कर सके उसे आप एकाकी ही अल्प समय में सुन्दर तथा आकर्षित ढंगसे पूर्ण करने के लिये समर्थ हो जाते हैं । आप जिन-वाणी के गहनतम विषयों को सरल शब्दोंमें बोधिगम्य बनाने तथा विलक्षण पद्धतिसे शिष्य-जनों को हृदयंगम कराने की अद्भुत प्रतिभासे सम्पन्न हैं, साथही जन-साधारणको वक्तृत्व कला के द्वारा मुग्ध करने की योग्यता रखते हैं। श्री जैनेन्द्र-सिद्धान्त कोश' आदि महान ग्रन्थोंका एकाकी सम्पादन कर आपने स्वयंकी दैवी शक्ति का ऐसा परिचय दिया है कि 'वर्णीदर्शन' जैसे ग्रन्थ का सम्पादन कर देना आपके लिये बाल-चेष्टा के समान प्रतीत होता है। PIFFETOFPREET कला EPIPPERFFIFT बिबा. सरेन्द्रनाथ TIPUR TERE IP 'S SP अधिष्ठाता ‘शान्ति निकेतन', ईसरी (२) सारा संसार ही बहिदृष्टा है और बहिर्जगत में उलझा हुआ है। क्षुल्लकजी बहिर-स्थितियों का खरा-खोटा मूल्यांकन करते हुए अन्दर की ओर बढ़ते हैं । इसलिये उन्होंने सैद्धान्तिक परिभाषाओं को नये रंग-ढंग में ला रखा
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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