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________________ SEPSE FE 7 अाप मुक्तागिरि आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी के दर्शनार्थ गये। वहाँ महराज श्री की विद्वता व उनकी वीतराग मुद्रा से अत्याधिक प्रभावित होकर उनके चरणों में अपना जीवन अर्पित कर दिया। स्वास्थ्य साथ न देने के कारण आप वहां अधिक समय न ठहर सके और वर्धा सन्त विनोबाजी के पास होते हुये पुनः वाराणसी आ गये। आप नवम्बर १९८२ में पुन: आचार्य श्री के पास नैनागिरि सिद्धक्षेत्र पर गये और सल्लेखना व्रत लेने का आग्रह किया। विहार के कारण तथा समय अनुकूल न होने के कारण प्राचार्य श्री ने सागर वर्णी भवन में आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिये तीन महीने ठहरने का आदेश दिया। इसी बीच आचार्य श्री सम्मेदशिखर वन्दना कर ईसरी शान्ति निकेतन उदासीन आश्रम में संघ सहित या विराजे और आपको ईसरी पाने के लिये कहा। फरवरी के अन्त में आप आचार्य श्री के पास ईसरी पहुंचे। स्वास्थ्य लाभ न होने पर तथा साधना में बाधा देखते हुये आपने पुनः प्राचार्य श्री से सल्लेखना व्रत के लिये अाग्रह किया। समय को अनुकूल देखते हुये प्राचार्य श्री ने १२-४-८३ को अपको सल्लेखना व्रत में निष्ठ कर दिया। ITE गरीही IPPISTRIES अन्न दूध घी आदि का त्याग करते हये निरन्तर आप अपनी काय को कृश करते जा रहे हैं । २१ अप्रैल को प्राचार्य श्री से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। शरीर को कृश करते हुये तथा निरन्तर उपवास तथा अल्प मात्रा में लोकी का जल लेते हुये भी आप समता में पूर्ण निष्ठ हैं । आपका मुख मंडल सूर्य के समान देदीप्यमान है तथा अाप अधिकाधिक प्रात्माभिमुख हो रहे हैं। भगवान से प्रार्थना है कि अाप पूर्ण समाधि में निष्ठ होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करें। की कि शीना FEDERS FIRM सुरेश कुमार जैन गार्गीय Log FE I TREE TEpी कि पानी प त ।
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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