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________________ दण्डनीति प्रजाकी संरक्षक पर विनाश पाता चला मारहा है और उसकी राष्ट्रीयशक्ति छिनभिज्ञ होती चली आरही है। जब तक भारत दण्डनीतिका सच्चा पाठ नहीं सीखेगा तब तक उसकी स्वतन्त्रता मरुमरीचिका बनी रहकर वास्तविकतासे दूर खडी रहेगी और भारतके लोग शान्तिके सांस नहीं ले सकेंगे । ऐसी विकट स्थिति में भारत के प्रत्येक नागरिकका कर्तव्य है कि वह इस दण्डनीतिको अपने देशकी राजशक्तिमें प्रतिफलित करके देशकी सच्ची सेवा करे । परन्तु ध्यान रहे कि भारतवासी लोग इस दण्डनीतिको देशकी राज्यशक्ति में तब ही मूर्तिमान कर सकते हैं जब वे अपने सामाजिक जीवन में प्रत्येक सत्यद्रोही और देशद्रोहीके साथ, चाहे वह मित्र, पुत्र, भ्राता या घनिष्ट संबन्धीतक क्यों न हो, इस दण्डनीतिको राष्ट्र कल्याणकी भावनासे प्रयोगमें लायें । जब तक भारत के लोग देशद्रोहियोंके साथ भी सम्बन्ध बनाये रखनेवाली अपनी ममनुष्योचित दुर्यल भावनाको हृदयसे निकाल बाहर नहीं करेंगे तब तक भारतकी दण्डनीति भारतकी राष्ट्रशक्तिके ऊपर अपना सुप्र. भाव स्थापित करने में अनंतकाल तक भसमर्थ बनी रहेगी। ( दण्डनीति प्रजाकी संरक्षक ) दण्डनीतिमधितिष्ठन् प्रजाः संरक्षति ।। ७९ ॥ राजा दण्डनीतिका अधिष्ठाता रहकर ही प्रजाका संरक्षण करने में समर्थ होता है। विवरण- राजा प्रजाके कल्याणकी दृष्टिसे दण्डनीतिका प्रमादशून्य सार्वदिक सार्वत्रिक प्रयोग करता रहकर ही प्रजापालन करसकता और अपने स्वामित्वको सटल रख सखता है । दण्डनीति ही राजाका अस्तित्व बनाये रखनेवाला एकमात्र साधन है । दण्डनीति में तिल बराबर भी प्रमाद हो जानेसे राज्यश्रीपर घातक प्रहार होने लगते हैं। उसका अनिवार्य परिणाम राज्यका नष्ट भ्रष्ट होजाना होता है। दण्डनीति ही राज्यके शत्रुओंको दमन करनेवाला एकमात्र साधन है। राज्यसंस्थाको दुष्टनिग्रहका सतर्क कठोर कर्तव्य करना पडता है। उसकेऊपर समस्त राष्ट्रको रक्षाका गम्भीर उत्तरदायित्व रहता है। उसे राज्य
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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