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________________ सोम्य वेष है, तो राजाकी अनीतिपरायणता राष्ट्रकी ही अनीतिपरायणता है । राजाके अनीतिपरायण होनेका अपराध राजाके व्यक्तित्व तक ही सीमित नहीं रहता। राजाके बनीतिपरायण होने में सारा ही राष्ट्र कारण होता है। राष्ट्र के स्वयं अनीतिपरायण रहनेतक राजाका अनीतिपरायण होना अनिवार्य है। राजा वास्तव में राष्ट्र का ही प्रतिबिम्ब होता है । जैसा राष्ट्र होता है वैसा ही उसका राजा होता है। जैसे बिम्बको सुधारे विना प्रतिबिम्बका सुधार असंभव है इसी प्रकार राष्ट्रको सुधारे विना अकेले राजाको सुधारना असंभव है । क्योंकि प्रजाकी निर्विघ्न जीवनयात्राके लिये राज्यसंस्थाका होना अनि . वार्य रूपसे आवश्यक है इसलिये विवेकी लोग राज्यसंस्थाके सहायक बन कर रहें और उसका द्रोह न करें। यही सत्रका तात्पर्य है। जहां तक और जब तक संभव हो राजाको नीतिपरायण रखनेके प्रयत्नों को तो चालू रखें परन्तु उसका द्रोह करनेपर न उतरें । राज्यसंस्थाको सुधारकर रखना कर्तव्य होनेपर भी अराजकता फैलाना प्रजाके लिये कल्याणकारी नहीं है। नीति. वाक्यामृतके शब्दों में 'अस्वामिकाः प्रकृतयः समृद्धा अपि निस्तरितुं न शक्नुयुः। 'समृद्ध भी राजहीन प्रजायें निर्विन्न जीवनयात्रा नहीं कर सकतीं। इसलिये राज्यसंस्थाका द्रोह न करके जहां तक संभव हो उसका लहायक बनकर रहे । सत्रकार सांकेतिक भाषामें कहना चाहते हैं कि दूषित राज्यसंस्थाको भी नष्ट करनेका उपक्रम न करके उसे भी सुधारनेका ही प्रयत्न करना चाहिये । राज्य संस्थाका सकलोच्छेद तो भगतिक या अन्तिम उपायके रूपमें दी काममें लाना चाहिये । अराजकताको उत्तेजना देनेवाले लोग जानें कि अराजकतासे देशको अकल्पित विपत्तियों और विनाशोंका सामना करना पड़ता है। भारत अपने विभाजनके दिनों में अभी अभी अरा. जकताका भयंकर रूप देख चुका है। (सोम्य वेष ) उद्धतवेषधरो न भवेत् ॥६६॥ दृष्टिकटु ( द्रष्टाके मनमें तिरस्कारबुद्धि उत्पन्न करनवाल) रुचविगर्हित असाधारण वेष न पहने ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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