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________________ सन्धिमे सावधानता दुर्बलायो दुःखमावहति ॥ ६३ ॥ दुर्वल ( अर्थात् अपनी शक्ति में विश्वास न रखनेवाले, स्वत: न्त्रता या अशान्तिदमनके आदर्शको न अपनानेवाल ) कापुरुप के साथ सम्मिलित होना दुःख ( अर्थात् विनाश का कारण बन जाता है। विवरण- प्रायः देखने में भाता है कि भौतिक शक्तिहीन दो टुबलों के सच्चे मिलनसे नवीन महाशक्ति का जन्म होजाता है। इसीलिये इस सूत्रमें दुर्बल शब्दका “ अपनी शक्तिपर भरोसा न करनेवाला '' " कापुरूप" अर्थ किया है । इस सत्र दुर्बल शुब्द का यह अर्थ मान्य नहीं है कि मान लिक शक्तिसंपन्न कुछ दुर्बल राध संगठित होकर शक्तिमान् नहीं दन सकते। पाठान्तर- दुर्बलाश्रयो हि दुःखमावहति । (सन्धि गावधानता) अनिवद्राजानमाश्रयेल ।। ६४ ।। किसी राजासे आश्रयका सम्बन्ध जोडना आवश्यक होजान पर भी उसकी ओरसे अग्निके संबधके समान, उसे अपनी हानि न करने देने के संबंधमे पूरा सावधान रहकर व्यवहार करे । विवरण- उसे अपनी हानि करने का अवसर न दे। उसे इतना न चिपट जाय कि वह चाहे जब गला घोट सके । जैसे भागमें स्वयं जल मरन आगका दुरुपयोग है, परन्तु जैसे भागकी दाहिका शक्तिको मात्मरक्षाका साधन बनालेना उसका सदुपयोग है, इसी प्रकार विजोगीपु मनुष्य अशा न्तिकारक शत्रुका दमन करने के लिय किसीका माश्रय करे। वह किसीका आश्रय लेकर अपनी शान्ति तथा स्वतन्त्रता न खोबैठे। जैसे अग्निके दाहक शोषक होनेपर भी जीवन में उस महत्वपूर्ण उपयोग हैं, क्योंकि उसके विना काम नहीं चलते। इसी प्रकार जब बली राजाका पाश्रय लिये बिना जीवन धारण संभव होजाय तब बलहीन राजा राजलक्षणों से सम्पन्न
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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